Spiritual Power in Hindi| आध्यात्मिक शक्ति | प्रार्थना की शक्ति
प्रिय दोस्तो! आध्यात्मिक शक्ति या प्रार्थना की शक्ति अनंत और अद्भुत है। यह आत्मा की गहराइयों से निकली वह पुकार है, जो सीधा हमारे ईश्वर तक पहुंचती है। सच्चे मन से की गई प्रार्थना न केवल कठिन समय में सहारा बनती है, बल्कि हमें मानसिक शांति, धैर्य और आत्मबल भी प्रदान करती है। यह शक्ति हमे विश्वास दिलाती है कि ईश्वर हर क्षण हमारे साथ हैं और हमारी हर पुकार सुनने के लिए तत्पर हैं। लेकिन शायद हम मनुष्य ही अपने परमेश्वर अपने ईश्वर को याद करने में देरी करते हैं।
सुदामा और श्रीकृष्ण की मित्रता
सुदामा जी एक निर्धन ब्राह्मण थे। उनका जीवन कठिनाइयों से भरा हुआ था, लेकिन वे सच्चे धर्मपरायण थे। सुदामा, योगेश्वर श्रीकृष्ण के अभिन्न मित्र थे। हालांकि उनका जीवन कष्टों से भरा था, फिर भी उन्होंने कभी अपने प्रिय मित्र श्रीकृष्ण से अपनी परेशानियों की चर्चा नहीं की। वे अपने परिवार सहित गरीबी का जीवन जीते रहे, लेकिन कभी “कन्हैया” को पुकारा नहीं। शायद उनका आत्मसम्मान उन्हें ऐसा करने से रोकता होगा।
लेकिन क्या योगेश्वर से कुछ छुप सकता है? श्रीकृष्ण अपने मित्र के कष्टों को देखकर व्यथित हो जाते थे। वे सोचते, “सुदामा, तुमने मुझे इतना पराया क्यों कर दिया? अपनी तकलीफ मुझसे क्यों नहीं कहते? तुम्हारा कष्ट मुझसे देखा नहीं जाता, लेकिन मैं क्या करूं? बिना तुम्हारे बुलाए, मैं तुम्हारे पास आ भी तो नहीं सकता। अगर मैं आ गया, तो शायद तुम्हारे पुरुषार्थ को ठेस पहुंचेगी। हे मित्र, बस एक बार मेरी ओर कदम बढ़ाओ, फिर देखना तुम्हारा कन्हैया तुम्हारी ओर दौड़ पड़ेगा।”
कुछ समय बाद, जब सुदामा जी श्रीकृष्ण से मिलने उनके महल के द्वार पर पहुंचे, तो उन्हें कुछ भी कहने की आवश्यकता नहीं पड़ी। श्रीकृष्ण ने अपने मित्र की दशा देखते ही सब समझ लिया। वे इतने भाव-विह्वल हो गए कि माता रुक्मिणी को उन्हें “तीसरी मुट्ठी” चावल खाने से रोकना पड़ा। सुदामा के लिए यह मित्रता और प्रेम का सबसे बड़ा प्रमाण था।
युधिष्ठिर और द्यूत क्रीड़ा
दूसरी घटना महाभारत की है, जब युधिष्ठिर ने द्यूत क्रीड़ा (जुआ) में भाग लिया। उन्होंने इस बारे में श्रीकृष्ण को सूचित नहीं किया और उनसे यह बात छुपाई। जब जुए में युधिष्ठिर दांव पर दांव हारते जा रहे थे, तब श्रीकृष्ण उनसे ज्यादा विचलित थे। वे सोच रहे थे, “हे धर्मराज, आज आप कैसा अधर्म कर रहे हैं! आपने मुझे इस बारे में क्यों नहीं बताया? अगर मैं वहां होता, तो शकुनि के सारे पांसे उलटे पड़ जाते। यह कपटी दुर्योधन एक बार भी नहीं जीत पाता।”
युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से इतनी महत्वपूर्ण बात छुपाई और इसके कारण अपने जीवन के सबसे लज्जास्पद क्षण देखे। उन्होंने न केवल खुद को, बल्कि अपने पूरे परिवार को तेरह वर्षों के वनवास में धकेल दिया। यह उनकी सबसे बड़ी भूल थी।
द्रोपदी की पुकार
जुए के बाद की घटना और भी हृदय विदारक थी। जब दुःशासन ने राजसभा में रजस्वला और एक वस्त्र धारण किए द्रोपदी को बालों से पकड़कर खींचा, तो वहां उपस्थित सभी लोग मौन थे। जब दुःशासन ने द्रोपदी के वस्त्र को खींचने का प्रयास किया, तो वह राजसभा के हर पुरुष से अपनी रक्षा की गुहार लगाती रही। लेकिन कोई उसकी मदद को आगे नहीं आया।
द्रोपदी उस समय अपने “सखा” श्रीकृष्ण को भी भूल गई थीं। लेकिन श्रीकृष्ण तो हर समय अपनी सखी के लिए तत्पर थे। वे सोच रहे थे, “कृष्णे, ऐसे कठिन समय में तुमने मुझे कैसे भुला दिया? क्यों नहीं पुकार रही हो मुझे? भले ही तुम मुझे आवाज मत दो, लेकिन मेरा स्मरण तो कर लो। क्या तुम्हारे जीवन में मेरा इतना भी महत्व नहीं है? बस एक बार मेरा स्मरण करो, फिर देखना मैं क्या करता हूं। मैं वचन देता हूं कि तुम्हारे साथ हुए इस अन्याय का फल पूरी कौरव सभा को भोगना पड़ेगा।”
आखिरकार, जब सब ओर से निराश होकर द्रोपदी ने पुकारा, “कृष्ण! मेरी रक्षा करो,” तब चमत्कार हुआ। श्रीकृष्ण ने अपनी सखी की पुकार सुन ली। द्रोपदी के शरीर से वस्त्र हटाने की कोशिश करने वाला दुःशासन भयभीत हो गया। उसके खींचने के बावजूद द्रोपदी के वस्त्र बढ़ते गए, और पूरी राजसभा में साड़ियों का ढेर लग गया। अंततः दुःशासन थककर चिल्लाने लगा और बेहोश हो गया। श्रीकृष्ण ने अपनी सखी की लाज बचा ली।
श्रीकृष्ण का संदेश
हे योगेश्वर! हे मुरलीधर! हम भी सुदामा, युधिष्ठिर और द्रोपदी की तरह भूल कर बैठते हैं। कठिन समय में हम आपको स्मरण नहीं करते। लेकिन जब हम आपको नहीं पुकारते, तब सबसे अधिक व्यथित तो आप होते होंगे। आप सोचते होंगे, “बस एक बार स्मरण तो करो मुझे, ताकि मैं तुम्हारे दुखों को दूर कर सकूं या तुम्हें इतना मजबूत बना दूं कि तुम कठिनाइयों से लड़ सको।”
हे प्रभु, हमें यह आशीर्वाद दीजिए कि हम हर समय आपका स्मरण कर सकें। हमारे जीवन में चाहे कितनी भी कठिनाइयां आएं, हमें इतनी शक्ति दीजिए कि हम उन पर विजय पा सकें। और जब हमारी शक्ति भी कम पड़ जाए, तो हमें स्मरण रहे कि आपका एक स्मरण ही हमारे लिए पर्याप्त है।
हे नाथों के नाथ! आपको बार-बार प्रणाम। हमें सदा अपने पवित्र नाम का स्मरण करते रहने का आशीर्वाद दीजिए।