माया और योगमाया: भगवान की अद्भुत शक्तियां | Maya and Yogmaya: Amazing Powers of God in hindi

माया और योगमाया में क्या अंतर है?

सबसे पहले यह समझ लीजिए कि माया और योगमाया यह दोनों भगवान की शक्ति है। जैसा की हम जानते हैं कि शक्ति और शक्तिमान से पृथक नहीं हो सकती। उदाहरण से समझिए आग और आग में जलाने की शक्ति। आग में जलाने की शक्ति होती है। तो आग को अलग कर दो और जलाने की शक्ति बची रहे ऐसा तो हो नहीं सकता। इसी प्रकार माया और योग माया दोनों भगवान की शक्ति है।

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योग माया शक्ति क्या है?

योग माया भगवान की अंतरंग शक्ति है। यह भगवान की अपनी शक्ति है। भगवान के जितने भी कार्य होते हैं वह योग माया से होते हैं। जैसे भगवान जो भी लीला करते हैं वह योग माया के द्वारा करते हैं। भगवान जो कुछ भी सोचते हैं वह योग माया तुरंत उस चीज को कर देती है। जैसे कि आपने सुना होगा कि कृष्ण जब जन्म लिए तो द्वारपा सो गए, द्वार अपने आप खुल गए, यमुना ने मार्ग दे दिया, यह सब योग माया से होता है।

माया और योगमाया
माया और योगमाया

योग माया की पहचान

जब भी भगवान की कोई चीज या कार्य असंभव हो और वह संभव हो रही है। तो आप समझ लीजिये की यह योग माया के द्वारा हुआ है। जैसे वेदों ने कहा कि भगवान स्वतंत्र हैं वह किसी के अधीन नहीं है। और वह यशोदा मैया के डंडे से डर जाते हैं और उनमें रस्सी से बंध जाते हैं। तो यह सर्वज्ञ भगवान सब कुछ जानने वाला भगवान, सर्वशक्तिमान भगवान, सबको मुक्त करने वाला और मैया के यशोदा के रस्सी से बंध जाते है, और माँ से मुक्त करने की विनती करते है, और वो भी अभिनय में नहीं!

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वास्तव में, जैसे हम लोग माँ से डरते है, ऐसे ही। यह योग माया के कारण होता है। तो भगवान के जो लीलाएं हैं वह योगमाया से होती हैं। या ऐसा कह दो कि भगवान जो कुछ भी करते हैं, वह सब योग माया के कार्य होते हैं। और केवल भगवान नहीं जितने संत महात्मा हैं, जो सिद्ध हो चुके हैं, जिन महात्माओं ने भगवान की प्राप्ति कर ली है। वह भी योग माया की शक्ति से कार्य करते हैं।

योगमाया कैसे कार्य करती है?

योग माया की शक्ति कुछ ऐसी है कि कार्य माया के करते हैं, लेकिन उनको माया नहीं लगती। जैसे क्रोध करना यह माया का विकार है दोष है। लेकिन महापुरुष और भगवान भी क्रोध करते हैं, पर वह माया का क्रोध नहीं होता वह योगमाया का क्रोध होता है। देखने में लगता है कि भगवान क्रोध कर रहे हैं चेहरे पर गुस्सा है महापुरुष को क्रोध कर रहे हैं चेहरे पर गुस्सा है। लेकिन वो योग माया से क्रोध करते है और हम लोग कहते हैं कि यह संत भी माया के आधीन है।

लेकिन वास्तविकता यह है कि वह योग माया से कार्य कर रहे हैं अर्थात् चेहरे पर क्रोध है लेकिन अंदर कुछ क्रोध नहीं है यह योग माया का विलक्षण बात है।

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दुर्वासा जी ने अपने जीवन में दूब के अलावा कोई स्वाद नहीं लिया है? तो इस प्रश्न का उत्तर श्री कृष्ण देते हैं कि “यह कार्य योग माया से होते हैं, योग माया से माया के कार्य किए जाते हैं।

लेकिन वह भगवान और महापुरुष माया से परे रहते हैं।” दुर्वासा जी अनेक प्रकार के व्यंजन खाया हैं, यह माया का कार्य है, सबको दिख रहा है। लेकिन योग माया के कारण उनको यह माया का सामान का स्वाद उन्हें अनुभव नहीं होता। यही कार्य अर्जुन ने किया था, वह सब को मार रहा है दुनिया देख रही है कि हाँ! अर्जुन ने सबको मारा है। लेकिन वास्तव में अर्जुन ने किसी को नहीं मारा है। यह है योग माया के विलक्षणता।

माया क्या है?

माया भगवान की बहिरंग शक्ति है। माया भी भगवान की ही शक्ति है। लेकिन यह माया जो भगवान से विमुख जीव है या जो जीव भगवान को अपना नहीं मानते या अपना सब कुछ नहीं मानते या जिन जीवो को भगवत्प्राप्ति (भगवान की प्राप्ति) नहीं हुई है। उन पर यह माया हावी रहती है। जिन्होंने भगवान की प्राप्ति कर ली उनसे भगवान माया को हटा देते हैं और उन्हें योग माया की शक्ति दे देते हैं। जिससे वह महात्मा (संत, ऋषि मुनि) माया के कार्य करते हैं लेकिन माया से परे रहते हैं।

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योग माया का स्वरूप

दुर्गा ,सीता ,काली ,राधा ,लक्ष्मी ,मंगला ,पार्वती का मूर्त रूप है योग माया। और इसी योगमाया से कृष्ण राधा का शरीर है राधा कृष्ण का। इसीलिए राधे श्याम हैं और सीता राम हैं। शंकर के घर भवानी है योगमाया। ये साधारण नारियां नहीं हैं दिव्या हैं। योगमाया के ही अभिनय स्वरूप प्रगट रूप में हैं। अतएव इन नारियों को नारी मत समझियेगा। ये चाहे तो स्त्री के रूप में रहे या पुरुष के रूप में। ये स्वेच्छा से किसी भी रूप को धारण कर सकती है।

तो योगमाया को स्त्री का रूप मत समझियेगा। योगमाया भगवान की शक्ति है, ये कोई भी स्वरूप में रह सकती है। योगमाया बिना किसी स्वरूप के भी भगवान और महापुरुष के साथ रहती है। जैसे नारद जी, तुलसीदास, इनके पास कोई स्त्री नहीं है, लेकिन योगमाया की शक्ति है।

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कहानी-1-इस कहानी में भगवान विष्णु को शिव से अधिक महान दर्शाया गया है। यहाँ शिव सांसारिकता से दूर होने के कारण स्वयं की रक्षा करने में असमर्थ रहे।

एक असुर की अनंत भक्ति से प्रसन्न होकर शिव ने उसे एक वरदान दिया। उस असुर ने ऐसा वरदान माँगा जिससे वह जिस भी वस्तु को स्पर्श करे वो भस्म हो जाये। यह वरदान मिलते ही असुर ने शिव पर अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करना चाहा। शिव स्वयं का जीवन बचाने वहाँ से भागे। असुर ने उनका पीछा किया। भयभीत, शिव विष्णु से सहायता लेने पहुंचे। विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया व असुर के आगे प्रकट हुए। मोहिनी की सुंदरता से मोहित, असुर ने उसके सामने विवाह का प्रस्ताव रखा। मोहिनी ने विवाह के लिए यह शर्त रखी कि असुर को मोहिनी की ही तरह नृत्य करना होगा। असुर मोहिनी को देख देख नृत्य करने लगा। नृत्य के मध्य में मोहिनी ने अपने सिर पर हाथ रखा। असुर ने भी वही किया और भस्म बन गया। शिव ने अपना जीवन बचाने के लिए विष्णु की प्रशंसा में गीत गाये जिन्हें हम विष्णु पुराण के नाम से जानते हैं।

कहानी-2-इस कहानी में भगवान शिव को विष्णु से अधिक महान दर्शाया गया है। शिव सांसारिक न होने के कारण अनंत हैं। उनका न प्रारम्भ है और ना ही अंत।

एक बार भगवान विष्णु व भगवान ब्रह्मा में मतभेद हो गयी। दोनों ही स्वयं को शीर्ष मान रहे थे। इसी मतभेद में ब्रह्मा व विष्णु के मध्य एक अग्नि का स्तम्भ प्रकट हुआ। ब्रह्मा ने बतख का रूप लिया और इस स्तम्भ का प्रारंभ ढूंढने ऊपर उड़ना चालू किया। विष्णु ने सुअर का रूप लिया और स्तंभ का अंत ढूंढने नीचे जाना चालू किया। जब दोनों थकने के बाद भी असफल रहे, तब उस स्तंभ में से शिव प्रकट हुए। दोनों ब्रह्मा व विष्णु को एहसास हुआ कि अग्नि का स्तंभ देवों के देव, महादेव, का रूप था। और यह कि महादेव सब से महान हैं क्योंकि उनका न कोई प्रारम्भ है ना ही कोई अंत।

हमारे शरीर और मानसिक आरोग्य का आधार हमारी जीवन शक्ति है। वह प्राण शक्ति भी कहलाती है।

 

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