सत्संग का अनसुना सत्य
एक बहरा व्यक्ति प्रतिदिन संत के सत्संग में आता था, लेकिन वह कुछ भी सुन नहीं सकता था। फिर भी, वह पूरे मन से वहाँ बैठता और प्रसन्नचित्त दिखाई देता। संत को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि जो व्यक्ति कथा सुन ही नहीं सकता, वह रोज़ क्यों आता है? जब संत ने उससे इसका कारण पूछा, तो वृद्ध का उत्तर सुनकर वे भावविभोर हो गए। यह कहानी बताती है कि सत्संग केवल सुनने की नहीं, बल्कि आत्मा से अनुभव करने की चीज़ है।

सत्संग का अनसुना सत्य
एक संत के पास एक बहरा व्यक्ति प्रतिदिन सत्संग सुनने आता था। वह पूरी तरह से बहरा था, उसके कान तो थे लेकिन नसों से जुड़े नहीं थे, जिससे वह कोई भी आवाज़ सुन नहीं सकता था। किसी ने संत से कहा, “बाबाजी! वह वृद्ध व्यक्ति जो कथा सुनते-सुनते हँसते हैं, वे पूरी तरह से बहरे हैं।” संत को यह सुनकर आश्चर्य हुआ कि जब वह व्यक्ति सुन नहीं सकता, तो फिर सत्संग में रोज़ क्यों आता है?
वह न केवल समय पर पहुँचता है बल्कि कथा पूरी होने तक वहीं बैठा रहता है। संत ने सोचा कि यदि उसे कथा सुनाई नहीं देती होगी, तो उसमें रस भी नहीं आता होगा, और जब रस नहीं आता होगा, तो उसे वहाँ बैठने की आवश्यकता ही नहीं होनी चाहिए। फिर वह बीच में उठकर चला क्यों नहीं जाता?

संत ने उस वृद्ध को पास बुलाया और उसके कान के पास ऊँची आवाज़ में पूछा, “क्या तुम्हें मेरी बात सुनाई देती है?” वृद्ध ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और उल्टा पूछा, “क्या बोले महाराज?” संत ने और ऊँची आवाज़ में पूछा, “मैं जो कह रहा हूँ, क्या वह सुनाई देता है?” वृद्ध ने फिर वही प्रतिक्रिया दी। संत को समझ में आ गया कि यह व्यक्ति पूरी तरह से बहरा है। तब उन्होंने सेवक से कागज और कलम मंगाई और उस पर लिखकर उससे पूछा, “अगर तुम सुन नहीं सकते तो फिर सत्संग में क्यों आते हो?”
वृद्ध ने उत्तर दिया, “बाबाजी! मैं सुन तो नहीं सकता, लेकिन इतना जानता हूँ कि जब ईश्वर-प्राप्त महापुरुष बोलते हैं, तो वे पहले परमात्मा में डुबकी लगाते हैं। जब कोई साधारण व्यक्ति बोलता है, तो उसकी वाणी केवल मन और बुद्धि को छूती है, लेकिन जब ब्रह्मज्ञानी संत बोलते हैं, तो उनकी वाणी आत्मा को छूकर निकलती है। मैं आपकी अमृतवाणी को सुन नहीं सकता, लेकिन उसके कंपन मेरे शरीर को स्पर्श करते हैं।”
इसके अलावा, वृद्ध ने यह भी बताया कि सत्संग में आने से उसे उन पुण्यात्माओं के बीच बैठने का अवसर मिलता है, जो भगवद्भक्ति में लीन होते हैं। संत उसकी गहरी समझ को देखकर प्रभावित हुए और उससे पूछा, “तुम रोज़ समय पर यहाँ पहुँचते हो और सबसे आगे बैठते हो, ऐसा क्यों?” वृद्ध ने उत्तर दिया, “मैं अपने परिवार का सबसे बड़ा सदस्य हूँ।
घर के बड़े जो करते हैं, छोटे वही अनुसरण करते हैं। जब मैं सत्संग में आने लगा, तो मेरा बड़ा बेटा भी आने लगा। फिर उसने अपनी पत्नी को लाना शुरू किया, और उसकी पत्नी ने बच्चों को भी साथ लाना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे पूरा परिवार सत्संग से जुड़ गया और सबको अच्छे संस्कार मिल गए।”
वृद्ध की बात सुनकर संत को एहसास हुआ कि सत्संग केवल सुनने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका प्रभाव जीवन पर पड़ता है। भले ही कोई व्यक्ति सुनने में असमर्थ हो, लेकिन सत्संग के वातावरण में बैठने से भी जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं। सत्संग आत्मा को पवित्र करता है, पापों को मिटाता है और जीवन को सही दिशा में मोड़ता है। यह सुनने, समझने और मनन करने से भी अधिक महत्वपूर्ण होता है। इसलिए, भले ही कोई शब्दों को न समझे, लेकिन सत्संग में शामिल होने मात्र से भी आत्मा को लाभ मिलता है और जीवन में उत्तम संस्कार आते हैं।
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