संतों की संगति
राधे राधे 🙏🙏
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Toggleमंदिर और सत्संग में बहुत भीड़ होती है। तो क्या घर में रहकर नामजप और सत्संग सुन सकते हैं?
संतों की संगति
हां सत्संग तो जरूर सुनिए और नाम जप भी कीजिए लेकिन संतों के पास जाइए। भीड़ से मतलब क्या होता है, हमको लाभ से मतलब है। अब चाहे आप काशी विश्वनाथ जी जाइए, आप चाहे जहां भगवान के धाम में जाइए — वहां धक्के तो खाने पड़ते हैं। लेकिन वर्तमान में जो हमको सुख मिल रहा है, जो हमारे परमाणु बन रहे हैं, जो हमारी याददाश्त बन रही,
जो हमारे जीवन की यह शुभ घड़ी व्यतीत हो रही है — यह मोबाइल से पूर्ति नहीं होगी। नहीं होगी। तो मुझे लगता है थोड़ा भीड़ का धक्का सह ले लेकिन कभी-कभी संतों के पास तो चला जाया करें, क्योंकि वहां परमाणु मिलते हैं। अनजाने में आपकी भागवतिक बैटरी चार्ज हो रही है। आप देख लीजिए, अनजाने में आपको वो परमाणु मिल रहे हैं जिससे आपके पाप नष्ट होंगे।

संत दर्शन पातक टराई और आपके अंदर अध्यात्म में चलने का बल मिलेगा — केवल बैठने मात्र से। और सुन रहे हैं तो और फिर और मनन कर रहे हैं और आचरण में उतार रहे हैं, तब तो भगवत प्राप्ति निश्चित है। इसमें संशय क्या है? महा संग सत्संग दुर्लभ हो। महापुरुषों का संग दुर्लभ है। सुत, दारा, धन, लक्ष्मी पापियों के घर होए, संत समागम, हरिकथा — तुलसी दुर्लभ दो। अगर भगवान की कृपा ना होती तो आप ऐसे ना बैठते। अब मोह भा भरोस हनुमंता, बिनु हरि कृपा मिले। भगवान जब कृपा करते हैं तब संतों का संग मिलता है।
तो मुझे लगता है कभी अवसर लगे तो दांव चूकना नहीं चाहिए, जाना चाहिए और संतों से मिलना चाहिए।
क्या गृहस्थ संत के दर्शन और जुठन लेने से भी कल्याण होगा?
बिल्कुल अवश्य, यहां गृहस्थ–विरक्त से मतलब नहीं। यहां संत एक स्थिति होती है, साधुता एक स्थिति होती है — वेश मात्र को संत नहीं कहते। इस वेश का आश्रय लेकर बहुत असंत भी हुए हैं और बहुत असंत भी हो सकते हैं। दंभ, पाखंड — सब तो गृहस्थ में ऐसे हो सकते हैं, जो वेश नहीं धारण किए, लेकिन बड़ी अच्छी स्थिति हो। ये हमने देखा अपने एकांत में — बहुत से ऐसे गृहस्थ आए जिनकी स्थिति बहुत अच्छी थी, क्योंकि बिना स्थिति के वो शब्द नहीं निकलते।
तो हमें प्रणाम करने का मन हुआ कि गृहस्थी में रहकर… देखो हमको अगर एक काम बता दिया जाए तो हमें बड़ी परेशानी हो जाएगी। उनको 100 काम हैं, फिर भी वो भगवान का भजन करते हैं, फिर भी वो धर्म से चल रहे हैं, फिर भी वो नियम से चल रहे हैं — ये बड़ी बात है। गृहस्थी में भजन करना सबसे सबसे बड़ा आश्रम है — गृहस्थ आश्रम। क्योंकि हम लोग पैदा भी गृहस्थी में ही तो होते हैं, और हम पलते भी गृहस्थी से ही हैं। आज भी हमारा पोषण गृहस्थी से ही हो रहा है — कोई वस्त्र दे रहा है, कोई भोजन दे रहा है, कोई रुपया दे रहा है, कोई कुछ दे रहा है — तो दे तो गृहस्थ ही रहे ना।
गृहस्थी में पैदा हुए, गृहस्थी में पाले गए, और आज भी गृहस्थी हमारा पोषण कर रहे हैं। और वो हमारा पोषण करते हुए भजन कर रहे हैं — तो इससे बढ़कर क्या हो सकता है? गृहस्थ आश्रम सबसे बड़ा आश्रम हो जाता है। तो गृहस्थ में अगर कोई भजन कर रहा है तो उसकी चरण रज लेना, उसकी जूठ लेना — बिल्कुल वैसे ही काम करेगी जैसे किसी महापुरुष की अपराजिता।

नाम जप तो करती हूँ पर भविष्य को लेकर मन में बहुत डर रहता है क्या करूँ ?
क्योंकि भगवान पर विश्वास नहीं है। भगवान पर विश्वास ना होने के कारण हमें भविष्य की चिंता होती है। हमें सोचना चाहिए — जो जगत के पशु-पक्षियों को, सबको भरण-पोषण करते हुए स्वस्थ रख रहा है, उस परमात्मा की हम शरण में हैं। हमारा भविष्य मंगलमय होगा, बस हम पाप आचरण न करें। देखो, एक चीज हमारी बात मानना — यदि आपका चरित्र दूषित है, तो आप चाहे जितना माला घुमा लो, आपका विश्वास पुष्ट नहीं होगा। ये हमारी बात ध्यान रखना, क्योंकि विश्वास दृढ़ हो जाने का मतलब है — आपका परम कल्याण हो जाना। “भगवान पर दृढ़ विश्वास अचल निज धर्मा” — मतलब हो गया आपका काम।
तो जब तक मलिनता रहेगी, तब तक विश्वास नहीं आएगा। हमारी यह प्रार्थना है कि अगर विवाह हो गया है, तो अपने पति से प्रेम करें, और अगर विवाह नहीं हुआ है, तो ब्रह्मचर्य से रहें। तो ये बातें काम करेंगी जो हम आपसे कह रहे हैं — ये अध्यात्म की बातें हैं। आप इधर-उधर गंदी बातें करो, तो फिर यह रंग नहीं लाएगा। फिर अविश्वास तो हो ही जाएगा, और अविश्वास क्या — जपने में भी मन नहीं लगेगा, ये बातें सुनने में भी अच्छा नहीं लगेगा।
अगर मन अपवित्र होता चला गया, तो आज जो कमियाँ बढ़ रही हैं हमारे समाज में — वो व्यभिचार की, व्यसन की हैं। यही कमियाँ बढ़ रही हैं। लोग व्यसन कर रहे हैं, व्यभिचार कर रहे हैं। फिर धन चाहिए, तो छीना-झपटी, चोरी, हिंसा कर रहे हैं। नौजवान लोग बहुत भ्रमित हो रहे हैं। यह बहुत गलत हो रहा है। इसको पहले रोको, यह पहले छोड़ो — तब अध्यात्म को आप जान पाओगे, तब अध्यात्म में चल पाओगे।
अध्यात्म निष्पाप मार्ग है — “पापवंत कर सहज स्वभाव पाऊ, भजन मोर ते भाव न काऊ”। जो पाप आचरण करेगा, वह भजन नहीं कर पाएगा। उसे भगवान पर विश्वास नहीं होगा। अब पाप आचरण करोगे, माला दो माला घुमा लिया — बोले नाम का फल नहीं मिल रहा। पवित्र आचरण करो, पवित्रता से चलो। आप खुद देखो — हम अपना जीवन तुम्हें उदाहरण में दे रहे हैं। भिक्षा माँगकर जीवन भर खाया है, कभी एक रुपया पास नहीं रखा। आज देख लीजिए — अगर आज हमें जरूरत है, तो जगह है, व्यक्ति है, रुपया है, व्यवस्था है। वह परमात्मा जिसकी हम शरण में थे — उसने सारी व्यवस्था कर दी।
यह हम आपको इसलिए बता रहे हैं कि आप भविष्य के लिए चिंता मत करें। अगर आपका वर्तमान सही जा रहा है, पाप आचरण नहीं कर रहे हैं, और आप दुखी हैं — माना आप गरीब हैं, माना आपकी व्यवस्था नहीं है, लेकिन आपका भविष्य बड़ा उज्ज्वल होगा। उसी का सारा खेल है — वह तो चाहे तो एक मिनट में क्या से क्या न कर दे।
तो हम अपने भविष्य को परमात्मा के भरोसे छोड़ कर, अपने वर्तमान को संभालें। वर्तमान में हमारा कर्तव्य ठीक होना चाहिए। वर्तमान हमारा सही हो — तो आपसे सच्ची कहते हैं, भविष्य बड़ा मंगलमय होगा। भविष्य बड़ा मंगलमय हो। ईमानदारी से चलो, बेईमानी मत करो, पाप आचरण मत करो, गंदे आचरण मत करो। वह परमात्मा देख रहा है। उसके भरोसे में रहो — भविष्य ऐसा मंगलमय होगा कि आप उदाहरण हो जाएंगे दूसरे के लिए। भविष्य की चिंता मत करो।
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हमारे शरीर और मानसिक आरोग्य का आधार हमारी जीवन शक्ति है। वह प्राण शक्ति भी कहलाती है।