श्रीहरि विष्णु और महालक्ष्मी: एक कहानी
दोस्तों! बहुत समय पहले, जब यह सृष्टि आरंभ भी नहीं हुई थी, तब केवल शून्यता थी। कोई जीव-जंतु, पेड़-पौधे, न सूर्य, न चंद्रमा—कुछ भी नहीं। उस समय केवल एक ही शक्ति थी, जो अनंत और अपरंपार थी—भगवान विष्णु। वह शेषनाग की शैया पर योगनिद्रा में थे, और उनका तेज पूरी सृष्टि को प्रकाशित कर रहा था।
एक दिन, भगवान विष्णु ने अपनी नाभि से एक कमल उत्पन्न किया। इस कमल से ब्रह्माजी प्रकट हुए। ब्रह्माजी को भगवान विष्णु ने आदेश दिया,
“तुम इस सृष्टि का निर्माण करो। जीवों को उत्पन्न करो, और इसे विस्तार दो।”
ब्रह्माजी ने अपनी शक्ति और ज्ञान से सृष्टि का निर्माण शुरू किया। उन्होंने पृथ्वी, आकाश, जल, अग्नि और वायु का निर्माण किया। इसके बाद उन्होंने मनुष्यों, देवताओं, पशु-पक्षियों और सभी जीव-जंतुओं को उत्पन्न किया।
भगवान विष्णु ने तब यह जिम्मेदारी ली कि वह इस सृष्टि का पालन करेंगे। ब्रह्मा सृष्टि के रचयिता थे, शिव संहारक, और विष्णु इसके पालक।
महालक्ष्मी का प्रकट होना
भगवान विष्णु का हर कार्य महालक्ष्मी की उपस्थिति के बिना अधूरा था। सृष्टि की देखभाल के लिए समृद्धि और धन की आवश्यकता थी, और यही महालक्ष्मी का काम था। महालक्ष्मी का प्राकट्य समुद्र मंथन से हुआ। वह कमल पर विराजमान थीं और उनकी सुंदरता इतनी अद्भुत थी कि सभी देवता और असुर उनकी ओर खिंच गए।
लेकिन महालक्ष्मी ने भगवान विष्णु को अपना स्वामी चुना। उन्होंने कहा,
“हे श्रीहरि, आप ही इस संसार के पालनकर्ता हैं। मैं आपकी शक्ति के रूप में इस सृष्टि में कार्य करूंगी। जहां आप होंगे, वहां मैं भी रहूंगी।”
भगवान विष्णु और महालक्ष्मी का यह दिव्य मिलन सृष्टि को संतुलित करने के लिए आवश्यक था। महालक्ष्मी केवल धन और ऐश्वर्य की देवी नहीं थीं, बल्कि वह भक्ति, प्रेम और समर्पण की भी प्रतीक थीं।
‘श्री’ शब्द का रहस्य
महालक्ष्मी का एक नाम ‘श्री’ भी है। यह शब्द सम्मान, समृद्धि और ऐश्वर्य का प्रतीक है। जब भगवान विष्णु के नाम के आगे ‘श्री’ लगाया जाता है, तो यह केवल उनके लिए सम्मान का सूचक नहीं है, बल्कि यह महालक्ष्मी की उपस्थिति का प्रतीक भी है।
शास्त्रों के अनुसार, भगवान विष्णु के सभी अवतारों में महालक्ष्मी ने भी उनके साथ अवतार लिया। जब विष्णु ने श्रीराम का रूप लिया, तो महालक्ष्मी सीता के रूप में उनके साथ आईं। जब विष्णु ने श्रीकृष्ण का अवतार लिया, तो महालक्ष्मी रुक्मिणी बनकर उनकी अर्धांगिनी बनीं।
इसलिए भगवान विष्णु, उनके अवतारों और उनके नाम के आगे ‘श्री’ लगाया जाता है। यह केवल एक शब्द नहीं है, बल्कि यह यह दर्शाता है कि जहां श्रीहरि होंगे, वहां महालक्ष्मी भी होंगी।
श्रीराम और सीता की कथा
त्रेता युग में भगवान विष्णु ने श्रीराम के रूप में अवतार लिया। उस समय, रावण नामक एक असुर ने पूरी पृथ्वी पर आतंक मचा रखा था। रावण को पराजित करने और धर्म की स्थापना के लिए भगवान विष्णु को धरती पर आना पड़ा।
जब श्रीराम का जन्म हुआ, तो माता लक्ष्मी भी सीता के रूप में राजा जनक की पुत्री बनकर जन्मीं। श्रीराम और सीता का मिलन अद्भुत था। यह केवल दो व्यक्तियों का नहीं, बल्कि धर्म और समृद्धि का मिलन था।
जब रावण ने सीता का हरण किया, तो श्रीराम ने अपनी पत्नी को वापस पाने के लिए लंका पर चढ़ाई की। यह युद्ध केवल रावण और श्रीराम के बीच नहीं था, बल्कि यह अधर्म और धर्म के बीच की लड़ाई थी।
जब श्रीराम ने रावण को पराजित किया और सीता को वापस पाया, तो उन्होंने दिखाया कि समर्पण और प्रेम का महत्व कितना बड़ा है। उनके नाम के आगे ‘श्री’ लगाने का अर्थ यह है कि उनके हर कार्य में महालक्ष्मी की शक्ति और उपस्थिति थी।
श्रीकृष्ण और रुक्मिणी की कथा
द्वापर युग में भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में जन्म लिया। श्रीकृष्ण का जीवन प्रेम, करुणा और नीति का प्रतीक है। वह अपनी लीला और चमत्कारों से सभी को मोहित कर लेते थे।
श्रीकृष्ण के साथ भी महालक्ष्मी ने रुक्मिणी के रूप में अवतार लिया। रुक्मिणी ने श्रीकृष्ण को अपना पति मान लिया था और उनके प्रति पूर्ण समर्पित थीं।
जब रुक्मिणी के भाई रुक्मि ने उनका विवाह शिशुपाल से करने की योजना बनाई, तो रुक्मिणी ने श्रीकृष्ण को संदेश भेजा। श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी का हरण कर लिया और उनसे विवाह कर लिया। यह विवाह केवल दो व्यक्तियों का मिलन नहीं था, बल्कि यह प्रेम और भक्ति का प्रतीक था।
सीख: दृष्टिकोण और समर्पण
भगवान विष्णु और महालक्ष्मी की कथा हमें यह सिखाती है कि जीवन में प्रेम, भक्ति और समर्पण का कितना महत्व है। महालक्ष्मी और विष्णु का संबंध केवल पति-पत्नी का नहीं, बल्कि यह संदेश देता है कि सृष्टि के संचालन के लिए शक्ति और पालन का मिलन आवश्यक है।
श्री शब्द न केवल सम्मान का प्रतीक है, बल्कि यह यह भी दर्शाता है कि जहां भगवान विष्णु होंगे, वहां महालक्ष्मी का वास होगा।
निष्कर्ष
दोस्तो! भगवान विष्णु और महालक्ष्मी की कथा हमें यह सिखाती है कि जीवन में संतुलन कैसे बनाए रखा जाए। यह केवल धर्म और भक्ति की बात नहीं है, बल्कि यह हमें सिखाती है कि प्रेम, समर्पण और कर्तव्य का सही उपयोग कैसे किया जाए।
जहां श्रीहरि का नाम लिया जाता है, वहां ‘श्री’ का प्रयोग महालक्ष्मी के सम्मान और उनकी उपस्थिति को दर्शाता है। चाहे श्रीराम हों या श्रीकृष्ण, महालक्ष्मी ने हर युग में उनका साथ दिया और सृष्टि को समृद्धि और ऐश्वर्य से भर दिया।
इसलिए हमें भी अपने जीवन में प्रेम, भक्ति और समर्पण का भाव रखना चाहिए। श्री शब्द केवल भगवान विष्णु के नाम के साथ नहीं, बल्कि हमारे कार्यों में भी दिखाई देना चाहिए। यही इस कथा का सार है।
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राधे राधे 🙏🙏