भगवान दुख में क्यों याद आते हैं-Why do we remember God in times of sadness
राधे राधे!🙏🙏
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क्या जीवन में बिना दुख के भगवान नहीं मिलते?
महाराज जी, प्रभु जी — आप श्री जी के मुख से सुना है कि “दुख में जीव परमात्मा के अधिक निकट होता है।” महाराज जी, हम दुख की कामना तो नहीं कर सकते, लेकिन अगर जीवन में सुख है तो हम प्रभु की निकटता के लिए वही दुख वाला भाव कैसे अनुभव करें?
महाराज जी—सुख क्या है? आप ही बता दीजिए। क्या अच्छा खाना सुख है? क्या अच्छे कपड़े पहनना सुख है? क्या अच्छी पोजिशन या पद पर होना सुख है? क्या बैंक बैलेंस होना सुख है? या फिर महंगी गाड़ी में चलना सुख कहलाता है?
अगर यही सुख है तो जैसे गांव के लड़के जब गुड़ बनता है और उन्हें उसका सीरा चाटने को मिल जाता है तो नाचने लगते हैं — अगर कहीं रबड़ी मिल जाए तो सीरा की तरफ देखेंगे भी नहीं। अभी हमें सुख को जानना ही नहीं आया। अच्छा बताइए — अगर शरीर छूट जाए (क्योंकि यह मृत्यु लोक है और शरीर कभी भी छूट सकता है), तो न आपकी गाड़ी जाएगी, न बैंक बैलेंस, न पद, न प्रतिष्ठा और न ही कोई व्यक्ति। आप अकेले ही शरीर छोड़कर जाएँगे — और तब पूरा दुख ही दुख रहेगा।

पूरे जीवन में जो कमाया, उसमें से कुछ भी साथ नहीं जाएगा। यह लोक इतना खतरनाक है कि जब कोई यहां से जाता है तो कपड़ा तक उतरवाकर भेजा जाता है। यह शरीर तो वस्त्र मात्र है।
“वासांसि जीर्णानि यथा विहाय”
जैसे पुराने कपड़े उतार दिए जाते हैं, वैसे ही शरीर छूटता है। हंस जब उड़ता है, तो अकेला ही उड़ता है। अब बताइए, यह दुख नहीं तो क्या है?
सच्चिदानंद भगवान को भूलकर जो भोगों में सुख समझते हो, वह कितना बड़ा दुख है! भगवान ने तो यहां पोस्टर लगाकर लिख दिया है — “दुखालयम् अशाश्वतम्” — यानी यह संसार दुख का घर है और नश्वर है। फिर भी आपको इसमें सुख दिखता है तो आप धोखे में हो। जिसे आप सुख समझते हो, वह सुख नहीं है, सुख की छाया है। समझ नहीं पड़ती — यह मेरे गिरधर की माया है।
दुख ही दुख है — और हम उसी को भोग कर सुख मानते हैं। यही सबसे बड़ी बुद्धिहीनता है। यही असली दुख है — कि जो वस्तु दुख है, उसे ही हम सुख मानते हैं। मान लीजिए आप आराम से जी रहे हैं, कोई परेशानी नहीं, पर सबसे बड़ी परेशानी आने वाली है — मृत्यु। यह मृत्यु आपको आपके प्रियतमों से, पत्नी से, पुत्र से, मकान से — हर प्रिय वस्तु से अलग कर देगी।
अब सोचो — इसका समाधान क्या है? जब यह समझ आ जाएगी, तब जिसे आप सुख समझते हो, उसके प्रति घृणा उत्पन्न होगी, और वह भी दुख जैसा लगेगा। जो भगवान का विस्मरण करवा दे, उसे सुख नहीं, घोर दुख कहते हैं। वही तो सबसे बड़ी हानि है।

हनुमंत जी ने कहा — “विपति के समय ही प्रभु सुमिरन भजन होता है।” यहाँ तो सब स्वप्न है। सपने में लड्डू खाते हो — तो ना भूख मिटती है, ना लड्डू मिलते हैं। यही स्वापक सुख है — जब शरीर छूटेगा तो सब झूठा सिद्ध हो जाएगा।
70–80 वर्ष का जीवन इसलिए दिया गया कि भगवान का भजन करके भगवतप्राप्ति कर सको, परंतु हम भोगों में रम गए। अब बताओ — हमारे पास कौन सा सुख है जो स्थाई है?
जब सोए होते हैं, तब जागृत सुख साथ नहीं होते। जब जगे होते हैं, तब स्वापक सुख साथ नहीं होते। दोनों ही झूठे हैं। उमा कहती हैं — “अनुभव अपना कहूं — सत हरि भजन, जगत सब सपना।”
आप स्वप्न के सुख को ही वास्तविक मान रहे हो — यही अज्ञान है, यही दुख है। आप सुख को सुख ना मानकर, सुख की छाया को सुख मान रहे हो।
अब यदि आपको कोई कहे कि चलो, अब समय पूरा हुआ — मृत्यु का समय आ गया — तब बताओ, आपके पास क्या है? अगर आपने राधा-कृष्ण, हरि-राम का नाम जपा है, तो गर्व से कह सकते हो — हां, हमारे पास अमूल्य निधि है।
यदि नाम जप नहीं किया है, तो यहां कुछ नहीं जाएगा। चाहे जितने ऊँचे पद पर हो, प्रतिष्ठा में हो, सब कुछ यहीं छूट जाएगा। जहां सांस रुकी — वहीं हर डिग्री, हर इनाम, हर यश — सब मिट्टी हो जाएगा। फिर आप अपने कर्मों का फल भोगोगे — शुभ हो या अशुभ — स्वर्ग हो या नरक।
इसलिए नाम जप करो — भयभीत होकर नाम जप करो, क्योंकि मरना है — और सब कुछ छूटना है। यह दो शब्द याद रखो — “मरना है” और “छूटना है।”
जब अच्छा भोजन मिलेगा तो स्मरण आना चाहिए — “मरना ही है।” तब न कोमल वस्त्र अच्छे लगेंगे, न स्वादिष्ट भोजन। सब विषयी वस्तुएँ खारी लगेंगी। और हरि का आशिक उस मार्ग पर जाएगा जो न्यारा है।
भगवान ने इस संसार को दुखालय कहा है — और जो कुछ मिलेगा, वह अशाश्वत होगा। फिर भी लोग इस नश्वर संसार के पीछे भागते हैं। यही सबसे बड़ा दुख है।
अगर कोई बोले — मेरे पास सब कुछ है, पर मन नहीं लगता — तो समझ लो, यही उसका सबसे बड़ा दुख है। इसलिए नाम जप करो, इन भोगों के प्रति घृणा की भावना रखो — कि इनसे सिर्फ समय की बर्बादी हो रही है।
राधा राधा राधा, कृष्ण कृष्ण कृष्ण — जो नाम प्रिय हो, उसका खूब जप करो।
दुख तो है ही, और सबसे बड़ा दुख आ रहा है — मृत्यु। कल्पना करो कि किसी को बता दिया जाए कि कल 12 बजे फांसी है, और फिर उसे दुनिया के सारे सुख दे दिए जाएँ — तो क्या वह भोग सकेगा?
नहीं। क्योंकि हर सुख में उसे फांसी का फंदा दिखाई देगा। क्या खाऊँ? कल मरना है। क्या पहनूं? कल मरना है।
और हमें तो पता भी नहीं कि अगला श्वास पूरा होगा या नहीं।
इसलिए बहुत सावधान होकर निरंतर नाम जप करना है। हर समय भगवन्नाम का भजन करना है। ठीक है ना?
हम दुख माँगते नहीं — परंतु दुख तो इस संसार का स्वभाव है।
अगर सकरी विष्ठा (गंदगी) खाने वाला जीव भी अगर भगवान नरसिंह जी से मिलने को कहा जाए, तो वह बोलेगा — “नहीं, नाली ही अच्छा है।” इतनी गहरी आसक्ति है भोगों की — कि जीव, भगवान और उनके परम पद को त्याग कर, विषयों को अपना लेता है।
यह तो बड़े भाग्यशाली हैं, जो संतों के संग में आकर अपनी बुद्धि को शुद्ध करके भगवान में लगाते हैं।
नहीं तो अधिकतर लोग वहीं रहना पसंद करते हैं — यही मृत्यु है। यही मृत्यु-लोक है।
“जिन हरि भगत हृदय नहीं आनी, जीवित सब समान ते प्राणी।”
— अर्थात् जो हरिभक्त नहीं है, वह जीवित होकर भी मरा हुआ है।
जीवन का सार है — नाम जप। जितना नाम जपो, उतना आनंद मिलेगा। सब शास्त्रों का सार यही है — नाम जप। कलियुग में सिर्फ नाम ही आधार है। “कलियुग केवल नाम अधारा, सुमिर सुमिर नर उतरें पारा।”
खूब नाम जप करो। यह समय है भगवन्नाम कीर्तन का, भगवत कथा का। दूसरों का अपकार मत करो, दूसरों का अहित मत करो। यही सरल मार्ग है भगवतप्राप्ति का।
राधे राधे!🙏🙏
आध्यात्मिक ज्ञानवर्धक कहानियां | Spiritual Knowledge in Hindi
राधे राधे एक सच्ची कहानी। एक बार अवश्य पढ़े
हमारे शरीर और मानसिक आरोग्य का आधार हमारी जीवन शक्ति है। वह प्राण शक्ति भी कहलाती है।