ज्ञानवर्धक प्रेरक प्रसंग | 4 प्रेरक प्रसंग विद्यार्थियों के लिए |

ज्ञानवर्धक प्रेरक प्रसंग

प्रिय पाठको! हम आपके लिए ज्ञानवर्धक प्रेरक प्रसंग से जुड़ी कुछ कहानियाँ लाए हैं ज्ञानवर्धक प्रेरक प्रसंग वह छोटी कहानियाँ या घटनाएँ होती हैं जो व्यक्ति को ज्ञान, प्रेरणा और मार्गदर्शन प्रदान करती हैं। ये प्रसंग आमतौर पर जीवन के किसी महत्वपूर्ण मूल्य, नैतिकता, या सच्चाई को उजागर करते हैं और व्यक्ति को सकारात्मक दिशा में सोचने और कार्य करने के लिए प्रेरित करते हैं।

ऐसे प्रसंगों का उद्देश्य जीवन में सही निर्णय लेने, कठिनाइयों का सामना करने, और उच्च नैतिक मूल्यों को अपनाने के लिए प्रेरित करना होता है।

इन कहानियों का प्रभाव इसलिए भी अधिक होता है क्योंकि वे वास्तविक जीवन के अनुभवों या लोक कथाओं पर आधारित होती हैं, जो आसानी से समझ में आती हैं और याद रहती हैं।

महाभारत से जुड़ा प्रेरक प्रसंग

महाभारत में एक प्रसंग आता है, युद्ध समाप्त होने के बाद श्री कृष्ण से पूछा कि पांडवो को जिताने के लिए आपने झूठ बोला, आपने पांडवो को जिताने के लिए अपनी शस्त्र नहीं उठाने की प्रतिज्ञा को तोड़ा। आखिर आपने ऐसा क्यों किया ?*

*तो श्रीकृष्ण ने बड़ा सुंदर उत्तर दिया। उन्होंने कहा कि मेरे लिए कौरव ओर पांडव दोनों ही समान हैं.. परंतु मैंने पांडवों को नहीं जिताया। मैंने हस्तिनापुर को जिताया। मैं जानता था कि कौरवों की तरफ सभी खराब लोग नहीं है और पांडव की तरफ सभी अच्छे लोग नहीं थे, पर यदि कौरव जीतते तो सत्ता दुर्योधन के हाथ में चली जाती, और वह वही करता जो उसके लिए अच्छा होता औऱ पांडव जीतते हैं तो सत्ता युधिष्ठिर के हाथ में होगी, जिसके लिए स्वहित से बड़ा है देशहित ।।*

*इसलिए मैने पांडवों को नहीं जिताया, हस्तिनापुर को जिताया अर्थात देश को जिताया है।*

*इस सारे प्रसंग का एकमात्र सार है कि स्वहित से देश/राष्ट्रहित सदैव ही बड़ा है और हमें भी राष्ट्र प्रथम के मूल मंत्र को मन-मस्तिष्क में धारण करते हुए आगे बढ़ना चाहिए।* देश की एकता , सुरक्षा, अखंडता एवं सार्वभौमिकता को अक्षुण्ण बनाए रखने में अपनी ईश्वर प्रदत्त दूर दृष्टि का सदुपयोग करें क्योंकि देश है तभी हम हैं..*

*अपने भीतर कृष्णत्व का साक्षात अनुभव करें।।*

 

संकल्प  से सिद्धि

         होटल में मेरे सामने एक पूरी फैमिली बैठी थी ! मम्मी, पापा, बेटा और बेटी । हमारी टेबल  उनकी टेबल के पास ही थी , हम अपनी बातें कर रहे थे,  वो अपनी । पापा खाने का ऑर्डर करने जा रहे थे ,वो सभी से पूछ रहे थे कि ~कौन क्या खाएगा ?

      बेटी ने कहा ~ बर्गर , मम्मी ने कहा ~ डोसा ,पापा खुद बिरयानी खाने के मूड में थे पर बेटा तय नहीं कर पा रहा था !

वो कभी कहता ~ बर्गर, कभी कहता ~ पनीर रोल खाना है ।पापा कह रहे थे ~तुम ठीक से तय करो कि क्या लोगे ? अगर तुमने पनीर रोल मंगाया तो फिर दीदी के बर्गर में हाथ नहीं लगाओगे । बस  फाइनल तय करो कि तुम्हारा मन क्या खाने का है ?

      हमारे खाने का ऑर्डर आ चुका था ,पर मेरे बगल वाली फैमिली अभी भी उलझन में थी । बेटे ने कहा ~ वो तय नहीं कर पा रहा कि क्या खाए ! माँ बोल रही थी, कि तुम थोड़ा- थोड़ा सभी में से खा लेना औरअपने लिए कोई एक चीज़ मंगा लो ! लेकिन बेटा दुविधा में था । पापा समझा रहे थे, कि इतना सोचने वाली क्या बात है ? कोई एक चीज़ मंगा लो जो मन हो, वही ले लो ।

प्रेरक प्रसंग - ॐ जप Om Jap

परंतु लड़का तय नहीं कर पा रहा था वो बार-बार बोर्ड पर बर्गर की ओर देखता ,फिर पनीर रोल की ओर ! मैं सोच रहा था, कि  उसके पापा  ऐसा क्यों नहीं कह देते, कि ~ ठीक है, एक बर्गर ले लो और एक पनीर रोल भी । उनके बीच चर्चा चल रही थी ।

     पापा बेटे को समझाने में लगे थे, कि कोई एक ही चीज़ आएगी , मन को पक्का करो । आखिर में बेटे ने भी बर्गर ही कह दिया । जब उनका खाना चल रहा था और हमारा खाना पूरा हो चुका था ,  कुर्सी से उठते हुए अचानक मेरी नज़र लड़के के पापा से मिली । उठते-उठते मैं उनके पास चला गया,

और हैलो करके अपना परिचय दिया । बात से बात निकली !

मैंने उनसे कहा ~मन में एक सवाल है अगर आप कहें , तो पूछूँ ? उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा ~ पूछिए !

       आपका बेटा तय नहीं कर पा रहा था, कि वो क्या खाए. वो बर्गर और पनीर रोल में उलझा था । मैंने बहुत देर तक देखा, कि आप न तो उस पर नाराज़ हुए, न आपने कोई जल्दी की ! न ही आपने ये कहा, कि तुम दोनों चीज़ ले सकते हो ।

मैं होता तो कह देता, कि दोनों चीज़ ले आता हूँ , जो मन हो खा लेना बाकी पैक करा कर ले जाता ।

     उन्होंने कहा ~ ये बच्चा है ! इसे अभी निर्णय लेना सीखना होगा । दो चीज़ लाना बड़ी बात नहीं थी , बड़ी बात है इसे समझना होगा, कि ज़िंदगी में दुविधा की गुंजाइश नहीं होती फैसला लेना पड़ता है । मन का क्या है, मन तो पता नहीं क्या- क्या करने को करता है. लेकिन कहीं तो मन को रोकना ही होगा । अभी नहीं सिखा पाया, तो  ये कभी नहीं सीख पाएगा ।

इसे ये भी सिखाना है, कि~जो मिला है, उसे संतोष से स्वीकार करो ।इसीलिए मैं बार-बार कह रहा था कि अपनी इच्छा बताओ ! इच्छा भी सीमित होनी चाहिए । एक बात, इसे और समझना है, कि जो एक चीज़ पर फोकस नहीं कर पाते,

वो हर चीज़ के लिए मचलते हैं । और  सच ये है कि  हर चीज़

न किसी को मिलती है, न मिलेगी !

हृदय में भगवान्

         यह घटना जयपुर के एक वरिष्ठ डॉक्टर की आपबीती है, जिसने उनका जीवन बदल दिया। वह हृदय रोग विशेषज्ञ  हैं। उनके अनुसार:-

         एक दिन मेरे पास एक दंपत्ति अपनी छः साल की बच्ची को लेकर आए। निरीक्षण के बाद पता चला कि उसके हृदय में रक्त संचार बहुत कम हो चुका है।

         मैंने अपने साथी डाक्टर से विचार करने के बाद उस दंपत्ति से कहा – 30% संभावना है बचने की ! दिल को खोलकर ओपन हार्ट सर्जरी के बाद, नहीं तो बच्ची के पास सिर्फ तीन महीने का समय है !

         माता पिता भावुक हो कर बोले, “डाक्टर साहब ! इकलौती बिटिया है। ऑपरेशन के अलावा और कोई चारा ही नहीं है, आप ऑपरेशन की तैयारी कीजिये।” ‘श्रीजी की चरण सेवा’ की सभी धार्मिक, आध्यात्मिक एवं धारावाहिक पोस्टों के लिये हमारे पेज ‘श्रीजी की चरण सेवा’ के साथ जुड़े रहें तथा अपने सभी भगवत्प्रेमी मित्रों को भी आमंत्रित करें।

         सर्जरी के पांच दिन पहले बच्ची को भर्ती कर लिया गया। बच्ची मुझ से बहुत घुलमिल चुकी थी, बहुत प्यारी बातें करती थी। उसकी माँ को प्रार्थना में अटूट विश्वास था। वह सुबह शाम बच्ची को यही कहती, बेटी घबराना नहीं। भगवान बच्चों के हृदय में रहते हैं। वह तुम्हें कुछ नहीं होने देंगे।

         सर्जरी के दिन मैंने उस बच्ची से कहा, “बेटी ! चिन्ता न करना, ऑपरेशन के बाद आप बिल्कुल ठीक हो जाओगे।” बच्ची ने कहा, “डाक्टर अंकल मैं बिलकुल नहीं डर रही क्योंकि मेरे हृदय में भगवान रहते हैं, पर आप जब मेरा हार्ट ओपन करोगे तो देखकर बताना भगवान कैसे दिखते हैं ?” मै उसकी बात पर मुस्कुरा उठा।

         ऑपरेशन के दौरान पता चल गया कि कुछ नहीं हो सकता, बच्ची को बचाना असंभव है, दिल में खून का एक कतरा भी नहीं आ रहा था। निराश होकर मैंने अपनी साथी डाक्टर से वापिस दिल को स्टिच करने का आदेश दिया।

         तभी मुझे बच्ची की आखिरी बात याद आई और मैं अपने रक्त भरे हाथों को जोड़ कर प्रार्थना करने लगा, “हे ईश्वर ! मेरा सारा अनुभव तो इस बच्ची को बचाने में असमर्थ है, पर यदि आप इसके हृदय में विराजमान हो तो आप ही कुछ कीजिए।” ‘श्रीजी की चरण सेवा’ की सभी धार्मिक, आध्यात्मिक एवं धारावाहिक पोस्टों के लिये हमारे पेज ‘श्रीजी की चरण सेवा’ के साथ जुड़े रहें तथा अपने सभी भगवत्प्रेमी मित्रों को भी आमंत्रित करें।

         मेरी आँखों से आँसू टपक पड़े। यह मेरी पहली अश्रु पूर्ण प्रार्थना थी। इसी बीच मेरे जूनियर डॉक्टर ने मुझे कोहनी मारी। मैं चमत्कार में विश्वास नहीं करता था पर मैं स्तब्ध हो गया यह देखकर कि दिल में रक्त संचार पुनः शुरू हो गया।

         मेरे 60 साल के जीवन काल में ऐसा पहली बार हुआ था। आपरेशन सफल तो हो गया पर मेरा जीवन बदल गया। होश में आने पर मैंने बच्ची से कहा, “बेटा ! हृदय में भगवान दिखे तो नहीं पर यह अनुभव हो गया कि वे हृदय में मौजूद हर पल रहते हैं।

         इस घटना के बाद मैंने अपने आपरेशन थियेटर में प्रार्थना का नियम निभाना शुरू किया। मैं यह अनुरोध करता हूँ कि सभी को अपने बच्चों में प्रार्थना का संस्कार डालना ही चाहिए।

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                           “जय जय श्री राधे”

भक्त का निश्चय 

एक बार कबीर जी ने साहूकार से एक सौ रूपये लिए और साधू संतों पर खर्च कर दिए.. और इकरार किया कि कुछ महीने के बाद सूद समेत दूँगा।

महीने निकल गए। वह साहूकार भी बड़ा बे-दर्द था उसने काजी की कचहरी में अर्जी दे दी और डिगरी करवाकर कुर्की ले ली।

कबीर जी के एक प्रेमी ने आकर बताया तो वह बड़े परेशान हुए।

उन्होंने अपनी पत्नी लोई जी से कहा कि घर का सारा सामान पड़ौसियों के यहाँ पर रख दो। जिससे साहूकार उनको कुर्क ना करा सके। और मैं चार दिन इधर-उधर चला जाता हूँ जब रूपये होगें तो साहूकार को देकर उससे देरी के लिए क्षमा माँग लूँगा।

लोई जी ने कहा: स्वामी ! मुझे निश्चय है कि राम जी अपने भक्त की कभी कुर्की नहीं होने देंगे। आपको कहीं पर भी जाने की जरूरत नहीं है।

कबीर जी ने अपनी पत्नी का निश्चय देखा, फिर भी कहा: लोई ! फिर भी मुझे कुछ दिन कहीं पर बिताने चाहिए।

लोई जी: स्वामी जी ! इसकी कोई जरूरत नहीं है। इस काम को राम जी आप ही सवारेंगे। लोई जी ने निश्चय के साथ कहा।

कबीर जी मुस्कराकर बोले: प्यारी लोई ! यही तो तेरा गुरू रूप है।

लोई जी ने कहा: स्वामी जी ! गुरू बोलकर मेरे सिर पर भार ना चढ़ाओ।

कबीर जी: लोई जी ! इसमें भला सिर पर भार चढ़ाने वाली कौनसी बात है। जो उपदेश दे, उसको गुरू मानना ही पड़ेगा।

कबीर जी अपनी पत्नी के साथ बात करने में इतने मग्न हो गये कि उन्हें साहूकार और कुर्की वाली बात ही भूल गई। रात हो गई परन्तु साहूकार नहीं आया।

सोने से पहले कबीर जी ने फिर कहा: लोई ! ऐसा लगता है कि साहूकार सबेरे पिआदे लेकर कूर्की करने आएगा।

लोई जी ने दृढ़ता के साथ कहा: स्वामी जी ! जी नहीं, बिल्कुल नहीं, कतई नहीं, कोई कूर्की नहीं होगी। परमात्मा जी उसे हमारे घर पर आने ही नहीं देंगे।

कबीर जी: लोई ! तुने मेरे राम से कुछ ज्यादा ही काम लेना शुरू कर दिया है।

लोई जी: स्वामी ! जब हम उसके बन गए हैं तो हमारे काम वो नहीं करेगा तो कौन करेगा ?

तभी अचानक किसी ने दरवाजा खटखटाया। लोई जी ने उठकर दरवाजा खोला तो सामने साहूकार का मूँशी खड़ा हुआ था, जो साहूकार की तरफ से तकाजा करने जाया करता था।

लोई जी ने मूँशी से पूछा: क्यों राम जी के भक्त ! हमारी कुर्की करने आए हो ?

मूँशी नम्रता से कहा: जी नहीं, माता जी ! आपकी कुर्की करने कोई नहीं आएगा।

क्योंकि जब हम कल कचहरी से कुर्की लेने गए तो वहाँ पर एक सुन्दर मुखड़े वाला और रेश्मी वस्त्र धारण करने वाला सेठ आया हुआ था।

उसने हमसे पूछा कि आपको कितने रूपये कबीर जी से लेने हैं। साहूकार ने कहा कि 100 रूपये और सूद के 30 रूपये।

उस सन्दुर मुखड़े वाले सेठ ने एक थैली साहूकार के हवाले कर दी और कहने लगा कि इसमें पाँच सौ रूपये हैं। यह कबीर जी के हैं और हमारे पास सालों से अमानत के तौर पर पड़े हुए हैं।

जितने तुम्हारे हैं आप ले लो और बाकी के कबीर जी के घर पर पहुँचा दो।

साहूकार जी उनसे और बातचीत करना चाह रहे थे, परन्तु वह पता नहीं एकदम से कहाँ चले गये जैसे छूमँतर हो गए हों।

यह कौतक देखकर साहूकार पर बहुत प्रभाव पड़ा। वह समझ गया कि कबीर जी कोई इलाही बन्दे हैं और वह उनकी कुर्की करके गुनाह के भागी बनने जा रहे थे।

साहूकार जी ने यह थैली आपके पास भेजी है, इसमें पूरे पाँच सौ रूपये हैं।

साहूकार जी ने कहा है कि कबीर जी उनके रूपये भी धर्म के काम में लगा दें और उनका यह पाप बक्श दें।

लोई जी ने कबीर जी से कहा: स्वामी ! राम जी की भेजी हुई यह माया की थैली अन्दर उठाकर रखो।

कबीर जी मुस्कराकर बोले: कि लोई जी ! इस बार राम जी ने तेरे निश्चय अनुसार कार्य किया है। इसलिए थैली तुझे ही उठानी पड़ेगी।

लोई जी: कि नहीं स्वामी ! राम जी हमारे दोनों के साँझें हैं। इसलिए आओं मिलकर उठाएँ।

दोनों पति-पत्नी अपने राम का गुणगान करते हुये थैली उठाकर अन्दर ले गए।

उसी दिन कबीर जी के घर पर एक बहुत बड़ा भण्डारा हुआ। जिसमें वह सारी रकम खर्च कर दी गई..!!

जय सियाराम

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