जन्माष्टमी पर केक काटना | Cutting the Cake on Janmashtami | Premanand Maharaj ji :28 | Satsang

जन्माष्टमी पर केक काटना-Cutting the Cake on Janmashtami

राधे राधे!🙏🙏

जन्माष्टमी पर केक काटना | Cutting the Cake on Janmashtami

महाराज जी! लड्डू गोपाल के जन्मोत्सव पर केक काटना क्या शास्त्रों के अनुसार सही है?

महाराज जी! आमतौर पर देखा गया है कि लड्डू गोपाल जी के जन्माष्टमी पर बहुत से भक्त केक काटते हैं और जन्मदिन मनाते हैं। बेकरी का केक शुद्ध नहीं होता, उसमें काफी अशुद्धियां होती हैं। ऐसे में यह सर्वथा उचित नहीं है। इसके लिए क्या होना चाहिए?

महाराज जी:- यह पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव है। वैष्णव पद्धति का ज्ञान नहीं है। ना तो किसी गुरु परंपरा से जुड़े हैं, ना ही सेवा विधि जानते हैं। बाजार से गोपाल जी को खरीद लाते हैं और घर में मनमाने तरीके से सेवा करते हैं।

परंतु अच्छा यही है कि किसी भी तरह से मन की वृत्ति भगवान में जुड़ जाए, तो वह कल्याण का आरंभ हो जाता है। जो दोष नहीं होने चाहिए, वे इसलिए होते हैं क्योंकि सेवा की पद्धति का ज्ञान नहीं है। किसी गुरु परंपरा से किसी महापुरुष के द्वारा गोपाल जी दिलवाए जाएं, फिर उनकी सेवा विधि बताई जाए, फिर वैष्णव पद्धति से चलें, तो बात अलग है। आजकल अपवित्रता बहुत बढ़ गई है। अब साधारण भोजन में भी अपवित्र पदार्थ निकलने लगे हैं।

जब पति भक्ति में साथ न दे
                        जब पति भक्ति में साथ न दे

तो हम ठाकुर जी को कैसे स्नान कराएं, कैसे भोग लगाएं? बड़ी अपवित्रता बढ़ रही है। जहां तक हो सके, पवित्रता का ध्यान रखना चाहिए। बेकरी आदि में जो चीजें बनती हैं, उनमें हमें लगता है कि कई बार अंडा आदि भी पड़ जाता है। अब जिन लोगों को सेवा पद्धति का ज्ञान नहीं है, वे मनमानी करते हैं। लेकिन हम मानते हैं कि अगर थोड़ा सुधार कर लिया जाए, तो यही भगवत मार्ग हो जाएगा।

प्रभु को किसी भी बहाने से स्मरण में लाना ही महत्वपूर्ण है। हमारे गोपाल जी, हमारे लाल जी, हमारे प्रभु – वे किसी भी बहाने से हमारे चिंतन में आ जाएं, तो हमारा कल्याण हो जाएगा। बाहरी सेवा का फल यही है कि आंतरिक चिंतन भगवान से जुड़ जाए। जैसे “अरे, अभी गोपाल जी को नहलाया नहीं”, “अभी गोपाल जी को जल का भोग लगाया”, “अभी गोपाल जी को दूध का भोग लगाना है” – यह स्मरण आते ही जीव का कल्याण प्रारंभ हो जाता है।

हमें लगता है कि यदि थोड़ी सी सावधानी रख ली जाए, तो यही भगवत मार्ग पुष्ट हो जाएगा। यही भगवान की प्राप्ति का माध्यम बन जाएगा। जब पूतना जहर लगाकर भगवान को स्तनपान कराने आई, तो भी भगवान ने उसे परम पद दिया। फिर अगर गोपाल जी को प्रेमपूर्वक दूध पिलाओगे, तो तुम्हारा कल्याण क्यों नहीं होगा?

अब जो भी पदार्थ हैं, उन्हें अपने घर में पवित्रता से बनाएं। एक रोटी में थोड़ा घी लगाकर, थोड़ा बूरा रखकर गोपाल जी को भोग लगा दो, तो भी वे बहुत राजी हो जाते हैं। गोपाल कोई साधारण बालक नहीं हैं – वे अखिल कोटि ब्रह्मांड नायक परात्पर हैं। उनके लिए नाम-कीर्तन करो, उत्सव मनाओ, सुंदर पकवान बनाओ, गोपाल जी को भोग लगाओ, दो-चार पड़ोसियों को भी खिलाओ, संतों को भी खिलाओ – तब तो यह उत्सव संपूर्ण हो जाएगा।

भगवान दुख में क्यों याद आते हैं
                  भगवान दुख में क्यों याद आते हैं

नाम कीर्तन करो, कथा करो, भोग लगाओ, संतों को पावन करो। अगर ऐसा उत्सव मनाना है, तो आओ वृंदावन। ठाकुर जी का घर है वृंदावन। एक बार वृंदावन में आकर अपने लाल जी का जन्म उत्सव मना लो। तो यह जो सुधार की भावना है, यह स्वयं श्रीकृष्ण की प्रेरणा से आती है। और जब ऐसे प्रश्न पूछे जाएंगे, तो लाखों लोग इस संदेश को सुनकर अपने आचरण में सुधार लाएंगे।

वास्तव में वात्सल्य भाव ही मुख्य है। जैसे मां का भाव अपने पुत्र के लिए होता है, वैसा ही भाव लड्डू गोपाल के लिए रखें, तो भगवान की प्राप्ति हो जाएगी। आजकल बहुत जगह ऐसा देखा गया है कि लोग गोपाल जी को तो ले लेते हैं, लेकिन सेवा भाव में टच नहीं होते। वे झूठे हाथों से सेवा कर रहे हैं, कहीं भी टोकरी या डलिया में रख रहे हैं। इसका कारण यह है कि वे गुरु परंपरा से नहीं जुड़े हैं, वैष्णव पद्धति नहीं जानते।

हमें लगता है कि वे कुछ नहीं जानते, लेकिन इतना जरूर जानते हैं कि ये भगवान श्रीकृष्ण हैं और हम उन्हें गोद में लिए हैं। वे कृपालु हैं, और वे केवल भाव से रीझ जाते हैं। हमें उनके कृपा पर विश्वास है। झूठा भाव भी यदि भगवान से जुड़ जाए, तो वह सच्चाई में परिवर्तित हो जाता है।

आज के समय में, जब भ्रष्टाचार, व्यभिचार और व्यसन प्रवृत्तियाँ बढ़ रही हैं, ऐसे समय में गोपाल जी को गोद में लेना, उनके साथ खेलना – यह स्मरण यदि कृष्ण से जुड़ा हो, तो “हरि स्मृति सर्व विपद विमोक्षा” – भगवान का स्मरण सभी विपत्तियों का नाश कर देता है।

अगर किसी को अनुभव हो गया कि गोपाल जी हमारे साथ हैं, और विश्वास बढ़ गया, तो एक दिन वह सत्संग भी मिलेगा, विचारों की शुद्धि भी होगी, और सही भगवद मार्ग में प्रवेश भी होगा। जिसने भगवान को गोद में लिया है, वह जानता है कि यह कृष्ण हैं, सच्चिदानंद हैं। उनका कल्याण प्रारंभ हो गया है।

अनजाने में भी उनका कदम परमार्थ की ओर बढ़ गया है। अब जो कमियाँ हैं, वह तो जगतगुरु श्रीकृष्ण स्वयं सुधार देंगे। जैसे आपने यह प्रश्न पूछ लिया, अब यह जब लोग सुनेंगे, तो सुधार होगा। झूठे से भी कृष्ण नाम लिया जाए, झूठे से भी सेवा प्रारंभ की जाए, तो श्रीकृष्ण सच्चा भाव प्रकट कर देते हैं। क्योंकि वे कृपालु हैं। हम अज्ञानी हैं, हमसे गलती हो सकती है, लेकिन वे ज्ञान समुद्र हैं, वे हमें सही राह दिखा देंगे।

जैसे आपको प्रेरणा हुई, वैसे लाखों को प्रेरणा होगी। यदि वे इसे स्वीकार करेंगे, तो भगवान कृपा करेंगे। भावना जैसी होगी, भगवान वैसे ही दर्शन देंगे। “जैसी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तैसी।”

भगवान यदि किसी अपराधी को भी परम पद दे सकते हैं, तो जो भोग लगा रहा है, सेवा कर रहा है, उसका तो निश्चित ही कल्याण होगा। भगवान मंगल भवन हैं। जब तक भगवान जीवन में हैं, तब तक अमंगल हो ही नहीं सकता।

जिनको मारा उन्हें भी परम पद दिया, ऋषियों को दुर्लभ पद दे दिया। तो जो भगवान से किसी भी प्रकार जुड़ा है, उसका मंगल सुनिश्चित है। यह भगवान की कृपा का प्रमाण है।

राधे राधे!🙏🙏

आध्यात्मिक ज्ञानवर्धक कहानियां | Spiritual Knowledge in Hindi

राधे राधे 🙏🙏 एक सच्ची कहानी। एक बार अवश्य पढ़े 🙏

हमारे शरीर और मानसिक आरोग्य का आधार हमारी जीवन शक्ति है। वह प्राण शक्ति भी कहलाती है।

 

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