गीता श्लोक इन हिंदी | Geeta Slok in Hindi | कृष्ण के उपदेश हिंदी में

गीता श्लोक इन हिंदी-Geeta Slok in Hindi

भगवद गीता के कुछ प्रसिद्ध श्लोक हिंदी में, अर्थ सहित:

गीता श्लोक इन हिंदी | Geeta Slok in Hindi

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन

(अध्याय 2, श्लोक 47)
श्लोक:
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥

अर्थ:
तुझे सिर्फ कर्म करने का अधिकार है, फलों में कभी नहीं।
इसलिए तू कर्मों के फल का कारण मत बन और न ही अकर्म (कुछ न करने) में आसक्त हो।


योगस्थः कुरु कर्माणि संगं त्यक्त्वा धनंजय

(अध्याय 2, श्लोक 48)
श्लोक:
योगस्थः कुरु कर्माणि संगं त्यक्त्वा धनंजय।
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते॥

अर्थ:
हे धनंजय! आसक्ति को त्यागकर, सफलता और असफलता में समभाव रखते हुए, तू योग में स्थित होकर कर्म कर।
ऐसा समभाव ही योग कहलाता है।

कर्म पर गीता के श्लोक
                          कर्म पर गीता के श्लोक

तस्मादसक्तः सततं कार्यं कर्म समाचर

(अध्याय 3, श्लोक 19)
श्लोक:
तस्मादसक्तः सततं कार्यं कर्म समाचर।
असक्तो ह्याचरन्कर्म परमाप्नोति पूरुषः॥

अर्थ:
इसलिए आसक्ति छोड़कर, निरंतर अपने कर्तव्य का पालन कर।
जो व्यक्ति ऐसा करता है, वह परम ब्रह्म को प्राप्त करता है।


नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः

(अध्याय 3, श्लोक 8)
श्लोक:
नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः।
शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्ध्येदकर्मणः॥

अर्थ:
अपने नियत (निर्धारित) कर्तव्य को कर, क्योंकि कर्म अकर्म (निष्क्रियता) से श्रेष्ठ है।
निष्क्रियता से तो तेरी शरीर यात्रा भी संभव नहीं है।


पूर्व जन्म के कर्म
                         पूर्व जन्म के कर्म

सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज

(अध्याय 18, श्लोक 66)
श्लोक:
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥

अर्थ:
सभी प्रकार के धर्मों को छोड़कर, केवल मेरी शरण में आ जा।
मैं तुझे सभी पापों से मुक्त कर दूँगा, तू शोक मत कर।

न जायते म्रियते वा कदाचित्

(अध्याय 2, श्लोक 20)
श्लोक:
न जायते म्रियते वा कदाचि‍द्
नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो
न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥

अर्थ:
आत्मा न कभी जन्म लेती है, न मरती है।
यह नित्य, अजन्मा, शाश्वत और पुरातन है।
शरीर के नष्ट हो जाने पर भी आत्मा नहीं मरती।


यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत

(अध्याय 4, श्लोक 7)
श्लोक:
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानम् अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥

अर्थ:
हे भारत (अर्जुन)! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है,
तब-तब मैं (भगवान) स्वयं की रचना करता हूँ।


परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्

(अध्याय 4, श्लोक 8)
श्लोक:
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे॥

अर्थ:
मैं साधुजनों की रक्षा, दुष्टों के विनाश,
और धर्म की स्थापना के लिए हर युग में अवतरित होता हूँ।


आत्मौपम्येन सर्वत्र समं पश्यति योऽर्जुन

(अध्याय 6, श्लोक 32)
श्लोक:
आत्मौपम्येन सर्वत्र समं पश्यति योऽर्जुन।
सुखं वा यदि वा दुःखं स योगी परमो मतः॥

अर्थ:
जो योगी अपने समान ही सबमें सुख-दुख को देखता है,
वह श्रेष्ठ योगी माना गया है।


श्रद्धावान् लभते ज्ञानं

(अध्याय 4, श्लोक 39)
श्लोक:
श्रद्धावान् लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥

अर्थ:
श्रद्धा रखने वाला, इन्द्रियों को संयम में रखने वाला व्यक्ति
ज्ञान को प्राप्त करता है, और फिर परम शांति को जल्दी ही प्राप्त करता है।

विद्या विनयसम्पन्ने

विद्या विनयसम्पन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि।
शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः॥

(अध्याय 5, श्लोक 18)
अर्थ: विद्वानजन विद्या और विनय से सम्पन्न ब्राह्मण, गाय, हाथी, कुत्ता और चांडाल—सबको समान दृष्टि से देखते हैं।

उद्यमेन हि सिद्ध्यन्ति

उद्यमेन हि सिद्ध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः॥

(महाभारत, गीता-भावार्थ समान)
अर्थ: कार्य परिश्रम से सिद्ध होते हैं, केवल सोचने से नहीं। जैसे सोते हुए सिंह के मुख में हिरण स्वयं नहीं प्रवेश करता।

राधे राधे!🙏🙏

आध्यात्मिक ज्ञानवर्धक कहानियां | Spiritual Knowledge in Hindi

राधे राधे 🙏🙏 एक सच्ची कहानी। एक बार अवश्य पढ़े 🙏

हमारे शरीर और मानसिक आरोग्य का आधार हमारी जीवन शक्ति है। वह प्राण शक्ति भी कहलाती है।

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