कृष्ण का विराट रूप: ब्रह्मांड का दिव्य स्वरूप | प्रसंग | Gupt Gyaan

कृष्ण का विराट रूप: ब्रह्मांड का दिव्य स्वरूप

राधे राधे 🙏🙏

दोस्तों, कृष्ण का विराट स्वरूप केवल एक दृश्य नहीं था, यह समूचे अस्तित्व की आत्मा थी। यह अनंत का उद्घाटन था—सृजन, संहार और पुनः निर्माण की प्रक्रिया का प्रत्यक्ष दर्शन। जब अर्जुन ने अपने नश्वर नेत्रों से इस दिव्यता को देखने में असमर्थता जताई, तब कृष्ण ने उन्हें दिव्य चक्षु प्रदान किए। क्योंकि विराट को देखने के लिए केवल आँखें नहीं, बल्कि आत्मा की विशालता चाहिए।

कृष्ण का विराट रूप

दोस्तों, कल्पना कीजिए—आप एक विस्तृत आकाश के नीचे खड़े हैं, जहाँ सूर्य, चंद्रमा, नक्षत्र, और अनगिनत ब्रह्मांड आपकी आँखों के सामने स्पंदित हो रहे हैं। प्रत्येक तारा, प्रत्येक ग्रह, प्रत्येक सजीव और निर्जीव वस्तु एक लयबद्ध नृत्य कर रही है।
कृष्ण का विराट रूप: ब्रह्मांड का दिव्य स्वरूप
कृष्ण का विराट रूप: ब्रह्मांड           का दिव्य स्वरूप
युद्धभूमि में अर्जुन ने देखा—
कृष्ण के मुख में अनंत ब्रह्मांड समाए हुए थे।
उनके नेत्र सूर्य और चंद्रमा की भाँति प्रज्वलित थे।
उनके असंख्य हाथों में शस्त्र चमक रहे थे, और वे सृष्टि का संचालन कर रहे थे।
उनके भीतर संपूर्ण चराचर जगत गतिशील था—हर जन्म, हर मृत्यु, हर युग उनके भीतर समाया था।
महाकाल स्वयं कृष्ण के रूप में प्रकट हुए, जहाँ समय के बंधन टूट चुके थे।
यह केवल दर्शन नहीं था—यह ब्रह्मांड के उन नियमों का प्रत्यक्ष रूप था, जिन्हें विज्ञान अब खोज रहा है।
कृष्ण का विराट रूप केवल एक दृश्य नहीं था, यह संपूर्ण अस्तित्व के स्पंदन का प्रकटीकरण था। यह शिव के तांडव जैसा था—जहाँ सृष्टि, स्थिति और संहार एक ही समय में हो रहे थे।
विज्ञान कहता है कि ब्रह्मांड की मूल प्रकृति कंपन (Vibration) है। यही कंपन संपूर्ण ऊर्जा का मूल है। कृष्ण का विराट स्वरूप इसी कंपन का महासंगीत था।
वे प्रकाश थे, जो संपूर्ण जगत को प्रकाशित करता है।
वे नाद थे, जो ओंकार की ध्वनि में प्रतिध्वनित होता है।
वे काल थे, जो हर क्षण को अपने भीतर समेटे हुए थे।
वे शून्यता थे, जो हर पदार्थ के मूल में निहित है।
जब अर्जुन ने यह देखा, तो वे भय और श्रद्धा से काँप उठे। यह केवल युद्ध के मैदान में खड़े एक योद्धा का दृश्य नहीं था—यह ब्रह्मांड के रहस्य का उद्घाटन था।
आधुनिक क्वांटम भौतिकी कहती है कि हर कण एक ही समय में कई स्थानों पर हो सकता है, जब तक कि कोई उसे देख न ले।
जब अर्जुन ने कृष्ण को सामान्य रूप में देखा, तो वे केवल उनके सखा थे।
जब उन्हें दिव्य चक्षु मिले, तो उन्होंने देखा कि कृष्ण संपूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त हैं।
यही सुपरपोजीशन है—जहाँ चेतना की अवस्था बदलते ही देखने की क्षमता भी बदल जाती है।
कृष्ण का विराट रूप यह दर्शाता है कि यह समस्त ब्रह्मांड केवल पदार्थ नहीं है, यह एक चैतन्य शक्ति से निर्मित है।
यही अद्वैत वेदांत का सार है—”सर्वं खल्विदं ब्रह्म”, अर्थात यह सबकुछ ब्रह्म ही है।
जब अर्जुन ने यह विराट रूप देखा, तो वे भय और विस्मय से भर उठे। उन्होंने देखा कि महायोद्धा, ऋषि, और यहाँ तक कि उनके कुटुंबी भी कृष्ण के भीतर विलीन हो रहे थे।
उन्होंने काँपते हुए कहा—
“हे प्रभु, मैं आपकी महिमा के आगे स्वयं को लघु और तुच्छ अनुभव कर रहा हूँ। आप सृष्टि के आदि और अंत हैं, आपसे परे कुछ भी नहीं है।”
यह अर्जुन के लिए एक परम परिवर्तन था। अब वे केवल एक योद्धा नहीं थे, अब वे सत्य के साक्षी बन चुके थे।
कृष्ण का विराट स्वरूप केवल अर्जुन के लिए नहीं था—यह हम सबके लिए एक संदेश था।
यह हमें बताता है कि जीवन केवल सीमाओं में बंधा हुआ नहीं है।
यह हमें सिखाता है कि हर आत्मा अनंत का अंश है।
यह हमें दिखाता है कि समय, स्थान और पदार्थ की वास्तविकता हमारे दृष्टिकोण पर निर्भर करती है।
विराट रूप का दर्शन केवल अर्जुन को नहीं हुआ, यह दर्शन प्रत्येक साधक को हो सकता है, जो अपने भीतर के दिव्य चक्षु को खोलता है।
कृष्ण ने अर्जुन से कहा—
“यो मामेवमसंमूढो जानाति पुरुषोत्तमम्।
स सर्बविद्भजति मां सर्वभावेन भारत॥”
— श्रीमद्भगवद्गीता 15.19
“जो इस विराट सत्य को जान लेता है, वह मेरी शरण में आ जाता है, क्योंकि वही सम्पूर्ण ज्ञान से युक्त होता है।”
जब हम अपनी सीमाओं को त्याग देते हैं, जब हम अपनी चेतना का विस्तार कर लेते हैं, जब हम केवल देखने के बजाय अनुभव करना सीख जाते हैं—तब विराट स्वरूप प्रकट होता है।
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