कर्म पर संस्कृत श्लोक | 10 Sanskrit Shloka on Karma | कर्म पर गीता के श्लोक | Karma

कर्म पर संस्कृत श्लोक-कर्म पर गीता के श्लोक

यहाँ कुछ प्रसिद्ध कर्म पर संस्कृत श्लोक दिए जा रहे हैं जो “कर्म” (कर्तव्य / कार्य / परिश्रम) पर आधारित हैं। ये श्लोक श्रीमद्भगवद्गीता, हितोपदेश, और अन्य वैदिक ग्रंथों से लिए गए हैं:

कर्म पर संस्कृत श्लोक | Sanskrit Shloka on Karma

श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय 2, श्लोक 47)

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥

हिंदी अर्थ:-तुझे कर्म करने का अधिकार है, उसके फलों में नहीं। इसलिए तू कर्म को फल की इच्छा से मत कर और न ही आलस्य से ही कर्म त्याग कर।


भगवान आखिरी बार कब प्रकट हुए थे
भगवान आखिरी बार कब प्रकट हुए थे

श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय 3, श्लोक 8)

नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः।
शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्ध्येदकर्मणः॥

हिंदी अर्थ:-तुम अपना निर्धारित कर्म करो, क्योंकि कर्म न करने की अपेक्षा कर्म करना श्रेष्ठ है। कर्म न करने से तो शरीर का पालन भी नहीं हो सकता।

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हितोपदेश

उद्योगिनं पुरुषसिंहमुपैति लक्ष्मीः।
दैवं हि दैन्यं कवलं विहिनो न लभ्यः॥

हिंदी अर्थ:-परिश्रमी और उद्योगी व्यक्ति के पास ही लक्ष्मी (संपत्ति) आती है। जो केवल भाग्य पर निर्भर रहते हैं, वे दरिद्र ही रहते हैं।

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मनुस्मृति

कर्मणैव हि संसिद्धिम् आस्थिताः जनकादयः।
लोकसंग्रहमेवापि संपश्यन्कर्तुमर्हसि॥

हिंदी अर्थ:-राजा जनक जैसे लोग भी केवल कर्म के द्वारा ही सिद्धि को प्राप्त हुए। अतः लोक कल्याण के लिए भी तुम्हें कर्म करते रहना चाहिए।

कर्म का चक्र
कर्म का चक्र

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नीतिशतक – भर्तृहरि

न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः।

हिंदी अर्थ:-सोए हुए सिंह के मुँह में हिरण स्वयं नहीं प्रवेश करते। अर्थात् बिना प्रयास के कुछ भी नहीं मिलता।

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श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय 3, श्लोक 19)

तस्मादसक्तः सततं कार्यं कर्म समाचर।
असक्तो ह्याचरन्कर्म परमाप्नोति पुरुषः॥

हिंदी अर्थ:-इसलिए आसक्ति को त्यागकर अपना कर्म सदा करते रहो। आसक्तिरहित होकर कर्म करने से मनुष्य परम सिद्धि प्राप्त करता है।

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महाभारत

कर्मणा जायते जन्तुः कर्मणैव विलीयते।
सुखं दुःखं भयं क्षेमं कर्मणैवाभिपद्यते॥

हिंदी अर्थ:-मनुष्य कर्म से जन्म लेता है और कर्म से ही समाप्त होता है। सुख-दुख, भय और सुरक्षा — ये सब कर्म के आधार पर प्राप्त होते हैं।

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हितोपदेश

न चोरहार्यं न च राजहार्यं
न भ्रातृभाज्यं न च भारकारी।
व्यये कृते वर्धते नित्यं
विद्या धनं सर्वधनात् प्रधानम्॥

हिंदी अर्थ:-विद्या ऐसा धन है जिसे न चोर चुरा सकते हैं, न राजा ले सकता है, न भाइयों में बँटता है और न ही बोझ बनता है। यह खर्च करने पर बढ़ता है और यह सभी धन में सर्वोत्तम है। (विद्या भी एक कर्म है)

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ऋग्वेद

कृण्वन्तो विश्वमार्यम्।

हिंदी अर्थ:-अपने कर्मों से पूरे संसार को श्रेष्ठ बनाओ।

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भर्तृहरि नीतिशतक

कष्टानि सहते यस्तु स कामं साधयत्युत।
न सुखार्थी कदाचित्तु नाप्नोति पुरुषार्थताम्॥

हिंदी अर्थ:-जो कठिनाइयों को सहन करता है, वही अपने उद्देश्य को प्राप्त करता है। जो केवल सुख चाहता है, वह कभी भी पुरुषार्थ (सफलता) प्राप्त नहीं कर सकता।


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