आध्यात्मिक शिक्षण क्या है | spiritual teaching in hindi

आध्यात्मिक शिक्षण क्या है-हमारे आजकल की शिक्षा प्रणाली में आध्यात्मिक शिक्षण की क्या आवश्यकता है। आजकल आप किसी से भी पूछ लीजिए कि स्कूल क्यों जाते हो, कॉलेज क्यों जाते हो तो आपको उत्तर मिलेगा कि मुझे डिग्री चाहिए। डिग्री क्यों चाहिए? ताकि मैं एक अच्छी नौकरी कर सकूं। आपको अच्छी नौकरी क्यों चाहिए? ताकि मैं बहुत सारा पैसा कमा सकूं। और आपको बहुत सारा पैसा क्यों कमाना है? ताकि मैं इस संसार की अच्छी-अच्छी वस्तुएं खरीद सकूं। और उससे मैं अपने जीवन को सुखी बना सकूं।

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आजकल के लोगों का सुख प्राप्त करने का जो मापदंड है वह यह की संसार की जो नई-नई वस्तुएं हैं, उनको खरीद कर हम सुखी हो सकते हैं। तो उस हिसाब से इस संसार में जितने भी अमीर व्यक्ति हैं वह सबसे सुखी होने चाहिए। लेकिन ज्यादातर ऐसा नहीं देखा जाता। आजकल की शिक्षा प्रणाली हमें सिर्फ अपनी जीविका अर्जन करना सिखाती है। पर वह जीवन के मूल्य नहीं सिखाती।

पहले जब विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करता था तो वह गुरु के आश्रम गुरुकुल में जाकर रहता था। और उसको जो भी शिक्षा दी जाती थी चाहे वह आर्थिक व्यवस्था की शिक्षा है, चाहे वह नीति राजनीति की शिक्षा है, चाहे वह चिकित्सा की शिक्षा हो। हर तरह की शिक्षा प्रदान की जाती थी और शिक्षा का महत्वपूर्ण आधार शास्त्र थे ।सारी शिक्षाएं शास्त्रों के आधार पर दी जाती थी। जीविका अर्जन की शिक्षा के साथ-साथ विद्यार्थी जीवन के मूल्य भी सीखता था।

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अगर किसी की प्रतिमा बनानी हो तो, वह मिट्टी, सोने, चांदी,लोहे की प्रतिमा बनाई जा सकती है। इस संसार में अगर कोई व्यक्ति थोड़ा सा प्रसिद्ध हो जाता है तो लोग उसकी प्रतिमा बनाते हैं। चौराहे पर किसी की प्रतिमा लगाई जाती है तो लोग उस पर फूल माला चढ़ाते हैं। उसकी जय जयकार होती है। अगर किसी को जीवन में प्रतिभावान बना है गौरवशाली बना है उसके लिए क्या चाहिए? उसके लिए हमारी डिग्रियां ही काफी नहीं है। पर आजकल की जो विद्या प्रणाली है वह सिर्फ विद्या प्रदान करती है। आज सिर्फ प्रैक्टिकल नॉलेज दी जाती है।

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आधुनिक शिक्षा में संस्कारों की कमी

एक बार गांव का एक बच्चा शहर के स्कूल गया। अभी गांव से जो बच्चा शहर गया उसके संस्कार थे कि दूसरों के चरण स्पर्श करना। बच्चे ने स्कूल में जाकर टीचर के चरण स्पर्श किए, लेकिन उसको सिखाया जाता है कि यह सब यहां करने की आवश्यकता नहीं है यहां तो बस दूर से ही हेलो करना काफी है बच्चों ने यह सब सीखा और अपने घर जाकर अपने माता-पिता, दादा दादी को हेलो पापा हेलो दादी, हेलो दादा जी कहना शुरू कर दिया। अब उसके माता-पिता सोच रहे हैं कि हमने तो बच्चे को शहर में भेजा था पढ़ने के लिए और इन लोगो ने हमारे बच्चे के संस्कार ही उसको भुला दिए।
आध्यात्मिक शिक्षण
हमने इतना पैसा खर्च किया और हमारा बच्चा, हमारे संस्कार ही भूल गया। आज्ञा का पालन करना बड़ों का सम्मान करना, यह सब शिष्टाचार आज कल के स्कूलों में नहीं सिखाया जाते। पश्चिमी देशों में तो यहां तक भी कहा आता है आपके ऊपर आपके माता-पिता क्रोध करें,आपको डांटे तो आप पुलिस को शिकायत कर सकते हो। आज कल की शिक्षा प्रक्रिया में जो सद्गुण है, परोपकार करना इसकी भावना भी नहीं सिखाई जाती है। अगर किसी के पास बड़ी-बड़ी डिग्रियां है लेकिन संस्कार नहीं है तो उसका पतन का कारण बनता है

आधुनिक शिक्षा प्रणाली और आध्यात्मिक शिक्षण की आवश्यकता

बच्चों को नम्रता, विनायक, शील यह सब, जो जीवन के मूल्य है उनको नहीं सिखाए जाते हैं। आजकल तो इसके विपरीत बच्चों को सिखाया जाता है तर्क-वितर्क करना, अपना मत सबसे आगे रखना, दूसरों की बात को नकारना, बड़ों से बहस करना। किसी से प्रश्न करना गलत बात नहीं है। बड़ो से बहस करना और नम्रता पूर्वक व्यवहार न करना, वह गलत है।

हमें अपने जीवन में सिर्फ यह नहीं सीखना कि जीविका कैसे अर्जित होती है बल्कि सबसे महत्वपूर्ण शिक्षा कि मैं हूं कौन? मेरा वास्तविक स्वरूप क्या है? मैं सिर्फ एक शरीर नहीं हूं। मैं आत्मा हूं इस पूरे संसार को किसने बनाया है? उस परमपिता परमेश्वर के साथ मेरा क्या संबंध है? और मैं उस संबंध को कैसे हासिल कर सकता हूं? तो यह वास्तविक शिक्षा है जब तक यह वास्तविक शिक्षा नहीं दी जाएगी तो व्यक्ति संसार के सुख-दुख, लाभ-हानि में ही उलझा रहेगा।

इसलिए शास्त्रों की शिक्षा परम आवश्यक है। बच्चो को भागवत गीता, श्रीमद् भागवत, रामायण के आधार पर शिक्षा दी जानी चाहिए। ताकि उनके चरित्र का सही निर्माण हो सके। उनका संपूर्ण विकास हो सके। वह अपने जीवन का परम उद्देश्य है उसको हासिल कर सके।

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स्वार्थी दुनिया में अध्यात्मिक मार्ग

यह दुनिया बड़ी ही स्वार्थी है। पड़ोसी के साथ अपने जरा सी भलाई कर दी, सहायता कर दी, तो वह चाहेगा कि और ज्यादा मदद मिल जाए और अगर आप नहीं करेंगे, तो वह आपकी बुराई करेगा। यह कायदा है कि आपने जिस किसी के साथ जितनी अच्छाई की होगी, वह आपका उतना ही अधिक फायदा उठाएगा, उतना ही अधिक दुश्मन बन जाएगा, क्योंकि जिस आदमी ने आपसे ₹100 पानी की इच्छा की थी और आपने उसे 20 रुपए ही दिए।  

आजकल हाथ कुछ तंग है। ₹20 हमसे ले जाओ, बाकी कहीं और से इंतजाम कर लेना। आपके ₹20 भी गए क्योंकि आपने उसे ₹80 नहीं दिए ,इसलिए वह आपसे नाराज है और वह आपके लिए मन ही मन सोचेगा कि बहुत ही चालाक आदमी है। मित्रों दुनिया का यही चलन है दुनिया में आप कहीं भी चले जाइए, आपको हर जगह सिर्फ असंतोष ही मिलेगा और यह असंतोष बैर और रोष में परिवर्तित हो जाता है।यह दुनिया ऐसी ही स्वार्थी है। इस स्वार्थी दुनिया में आप सदाचारी कैसे रह सकते हैं।

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आइए समझते हैं- अपने खूब समाज की सेवा की। दिन रात बहुत मेहनत की। लेकिन जब चुनाव में खड़े हुए तो, एमपी एमएलए के लिए लोगों ने आपको वोट नहीं दिया और दूसरे को दे दिया। इससे आपको बहुत धक्का लगा। आपने कहा कि भाई हमने तो अटूट सेवा की थी, लेकिन जनता ने चुनाव में जितने ही नहीं दिया। कैसी खराब जनता है भाड़ में जाए हम तो अपना काम करते रहेंगे।

उपासना में भी ऐसी ही निष्ठा की आवश्यकता है। अपने पत्थर की उपासना की और प्रेम किया। उपासना करने के लिए हम बैठते हैं धूप बत्ती जलाते हैं। धूपबत्ती क्या है? धूपबत्ती एक कैंडल का नाम है। जो कि सीक और लकड़ी की बनी होती है। वह जलती रहती है और सुगंध फैलती रहती है।

सुगंध फैलाने में भगवान को क्या कोई लाभ हो जाता है? क्या हमें कुछ लाभ होता है? हां हमें एक लाभ होता है और वह यह कि इससे हमें ख्याल आता है कि जिस तरह धूप बत्ती धीरे-धीरे जलकर पूरे घर में सुगंध फैलती है। इस तरह हमें भी अपने व्यवहार अपने आचरण से सारे समाज में सुगंध फैलानी चाहिए। हमारा जीवन धूपबत्ती की तरह सुगंध वाला और खुशबू वाला होना चाहिए।

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पाठको आध्यात्मिक व्यक्ति बनने के लिए पूजा की क्रिया करते-करते हम मर जाते हैं। हम भगवान के सामने दीपक जलाकर बैठ जाते हैं। दीपक जलता रहता है। रात में भगवान को कुछ दिखाई ना पड़े, यह बात समझ में आती है। लेकिन क्या दिन में भी दिखाई नहीं पड़ता? दिन में भगवान के आगे दीपक जलाने की क्या जरूरत है? इसकी कोई जरूरत नहीं है। कौन कहता है कि दीपक जलाइए? क्यों हमारा घी खर्च करते हैं? इससे हमारा भी कोई फायदा नहीं है।

आपकी शक्ल हमको दिखाई पड़ रही है और बिना दीपक के भी हम आपको देख सकते हैं फिर क्यों भला दीपक जलाते हैं? अध्यात्म की दृष्टि से अगर हम बात करें तो दीपक जलाने का मुख्य उद्देश्य भीतर के अंधकार को समाप्त कर, हृदय में प्रकाश भरना है। पाठकों सवाल बहुत छोटा है लेकिन इसके अर्थ बहुत गहरे हैं। इसका संबंध भावनात्मक स्तर के विकास से है। प्रकाश का प्रतीक है हमारे अंदर में प्रकाश और सारे विश्व में प्रकाश का यह प्रतीक है।

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हमारे जीवन में हर तरफ विनोद और हर्ष छाया रहता था। लेकिन अज्ञानता की इस छाया ने, हमारे जीवन को पूरी तरह से अंधकार मय बना दिया है। अज्ञानता के अंधकार ने हमारे जीवन को निराशा से भर दिया है। पहले हमारा जीवन उल्लास और आनंद से भरा हुआ था। ईश्वर की संप्रदायों से भरा हुआ था।स्वयं का सब कुछ होते हुए भी, कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता।

सब कुछ तो हमारे पास है पर मालूम पड़ता है कि हम ही सबसे ज्यादा दरिद्र है। हमारे पास किसी चीज की कमी है क्या? लेकिन हमको हर वक्त रूठे रहने का मौका, नाराज रहने का मौका, शिकायते करने का मौका, देश विदेश घूमने का मौका ही दिखाई देता है। हमारे आसपास ना जाने कितनी ही सारी खुशियां बिखेर पड़ी है। लेकिन हमारा सारा जीवन इसी अशांति में निकल जाता है।

आध्यात्मिक शिक्षण
आध्यात्मिक शिक्षण

मित्रों शास्त्रों में बताया गया है तमसो मा ज्योतिर्गमय हे दीपक हमने तुझे इसलिए जलाया है कि तू हमें अंधकार से प्रकाश की और ले चले अंतरात्मा की भूली हुई पुकार को हमारा श्रवण कर सके और इसके अनुसार हम अपने जीवन को प्रकाशवान बना सके। अपने मस्तिष्क को प्रकाशवान बना सके। दीपक जलाने का यही सही आध्यात्मिक उद्देश्य होता है।

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साथियों हम भगवान के चरणबिंदु पर फूल क्यों चढ़ाते हैं? इसका क्या उद्देश्य है? सुगंध से भरा फूल, हम पेड़ से तोड़कर भगवान के चरणों पर समर्पित कर देते हैं और कहते हैं कि हे परमपिता परमेश्वर ही शक्ति और भक्ति के स्रोत, हम फूल जैसा अपना जीवन आपके चरणों में समर्पित करते हैं। यह हमारा फुल हमारा अन्तः करण सब कुछ आपके ऊपर न्योछावर है।

क्या कहें हम उन लोगों के बारे में जो हमको केवल कर्मकांड सीखते रहे और यह सीखते रहे कि चावल फेंकते रहना, रोली फेंकते रहना, धूप जलते रहना, फूल चढ़ाते रहना और चंदन चढते रहना लेकिन उन कर्मकांड सीखने वालों ने हमें यह सीख नहीं दी कि  हमें क्यों चावल फेंकना है रोली क्यों लगानी है। क्यों भगवान के मुख पर चंदन लगाते हैं। कर्मकांड सीखने वालों ने हमें यहां नहीं बताया कि हम ऐसा क्यों करते हैं?

उन्होंने कभी यह नहीं बताया कि हमें चंदन के जैसा सुगंधित जीवन बनना हैं। चंदन हमने सिर पर लगाया तो जरूर, पर कभी यह ख्याल नहीं आया कि चंदन जैसा जीवन जिए।

सुगंध से भरा हुआ चंदन, सांप को छाती से लपेट रहने वाला चंदन, आसपास के हुए छोटे-छोटे पौधों को अपने सामान बनाने वाला चंदन, घिसे जाने पर भी सुगंध फैलाने वाला चंदन, जलाए जाने पर भी सुगंध देने वाला चंदन , मजाल है कि उसकी शीतलता में कोई कमी आ जाए। हमें अपना जीवन चंदन के समान जीना है और उसे ईश्वर को समर्पित करना है यही अध्यात्म है।

हमारे शरीर और मानसिक आरोग्य का आधार हमारी जीवन शक्ति है। वह प्राण शक्ति भी कहलाती है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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